Shahar Mein Curfew Tatha Anya Chaar Upanyas

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Shahar Mein Curfew Tatha Anya Chaar Upanyas

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Author: Vibhuti Narayan Rai

Availability: 5 in stock

Pages: 576

Year: 2014

Binding: Paperback

ISBN: 9789350724712

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

शहर मैं कर्फ़्यू तथा अन्य चार उपन्यास

हिन्दी कथाजगत में विभूति नारायण राय की उपस्थिति आश्चर्य की तरह बनी और विस्मय की तरह छा गयी। प्रस्तुत संकलन में विभूति जी के ये उपन्यास दिये जा रहे हैं- ‘घर’, ‘शहर में कर्फ्यू’, ‘किस्सा लोकतंत्र’, ‘तबादला’ तथा ‘प्रेम की भूतकथा’। सबसे खास बात इस रचनाकार की यह है कि इनके सभी उपन्यास एक-दूसरे से बिलकुल भिन्न हैं। ‘घर’ में सम्बन्धों के विखण्डन की त्रासदी है तो ‘शहर में कर्फ्यू’ में पुलिस आतंक के अविस्मरणीय दृश्यचित्र ‘किस्सा लोकतंत्र’ राजनीति में अपराध का घालमेल रेखांकित करता है। ‘तबादला’ उपन्यास उत्तर आधुनिक रचना के स्तर पर खरा उतरता है क्योंकि इसमें कथातत्व का संरचनात्मक विखण्डन और कथानक के तार्किक विकास का अतिक्रमण है। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में यह अपनी तरह का पहला कथा-प्रयोग रहा है। सरकारी तंत्र और राजनीतिज्ञ की सँठगाँठ के कारण तबादला एक स्वाभाविक प्रक्रिया न होकर उद्योग का दर्जा पा गया है। इन रचनाओं से अलग हट कर ‘प्रेम की भूतकथा’ एक अद्भुत प्रेम कहानी है जिसमें प्रेमी अपनी जान पर खेल कर प्रेमिका के सम्मान की रक्षा करता है।

प्रायः देखने में आता है कि रचनाकार एक बंधी बधाई लीक पर लिखना पसन्द करते हैं, इसलिए उनकी एक परिचित कथा- शैली बन जाती है। विभूति नारायण राय उन विरल रचनाकारों में हैं जिनके पास हर रचना के लिए अलग भाषा-शैली है, अलग कथानक है और अलग शिल्प-विधान। वे जीवन के बीचोबीच से अपनी कथावस्तु उठाते हैं और उसका यथार्थपरक विश्लेषण करते हैं। प्रत्येक रचना में सर्वहारा वर्ग के प्रति लेखक की सहानुभूति स्पष्ट झलकती है। आम आदमी के प्रतिदिन के संघर्ष, जीवन के अनुत्तरित प्रश्न, रोजगार के गम और न सूख सकने वाले आँसुओं का ब्योरा इन सभी रचनाओं में रचा बसा है, कुछ इस तरह कि विभूति नारायण राय पाठक के सम्मुख एक कद्दावर रचनाकार के रूप में आते हैं। कोई आश्चर्य नहीं अगर ‘तबादला’ को उपन्यास की परम्परा में श्रीलाल शुक्ल और हरिशंकर परसाई की अगली कड़ी मान लिया जाय। ‘तबादला’ पढ़ते हुए हमें ‘रागदरबारी’ की स्मृति उद्वेलित करती है। साथ ही यह सत्य भी बेचैन करता है कि दोनों रचनाओं के बीच चालीस वर्ष का अन्तराल भी इन विसंगतियों को मिटा नहीं पाया।

विभूति नारायण राय की रचनाओं में अद्भुत त्वरा और तेवर है। आमतौर पर लेखक कहानियाँ लिखने के बाद उपन्यास पर काम शुरू करते हैं। राय सीधे उपन्यास से आरम्भ करते हैं और अपने कथ्य को अनावश्यक विस्तार से बचाते हुए सघनता प्रदान करते हैं। उनकी रचनाओं में अप्रतिम दृश्य-चित्र उभर कर आते हैं, ‘घर’ में पिता एक एक कमरे का दरवाजा खोल कर अपनी सन्देहशीलता का परिचय देता हुआ; ‘शहर में कर्फ्यू में खून की पतली लकीर का पीछा करता पुलिस दस्ता; ‘किस्सा लोकतंत्र’ में तथाकथित एनकाउंटर का दृश्य ‘तबादला’ में मन्त्री और अधिकारी की मुलाकात का बाथरूम-प्रसंग आज जब भ्रष्टाचार के मसले पर देशव्यापी चिन्ता प्रकट की जाती है, राय की रचनाओं में ‘सत्य’ एक ऐसिड की भूमिका निभाता है और वर्तमान समय के ज्वलन्त प्रश्नों से टकराता है।

– ममता कालिया

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Authors

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Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2014

Pulisher

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