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भारतीय नवजागरण और वर्तमान संदर्भ
भूमिका
‘भारतीय नवजागरण और वर्तमान सन्दर्भ’ में कर्मेन्दु शिशिर ने नवजागरण का बड़ा सार्थक और सकारात्मक मूल्यांकन किया है। ऐसी किसी किताब की जरूरत हिन्दी में बहुत दिनों से महसूस की जा रही थी जो –
(1) विषय-विशेषज्ञों से अलग नवजागरण के सामान्य अध्येताओं के लिए तैयार की गई हो।
(2) जिसमें भारतीय नवजागरण की समग्र तस्वीर दिखायी देती हो।
(3) अधिकतम सम्भवः तटस्थता के साथ जिसमें नवजागरण के नायकों की विवेचना की गयी हो।
(4) पूर्व परम्परा के साथ नवजागरण का सम्बन्ध दर्शाया गया हो।
(5) नवजागरण की समकालीन प्रासंगिकता उजागर की गयी हो।
प्रस्तुत पुस्तक इन सभी अपेक्षाओं को कमोबेश पूरा करती है।
मध्ययुगीन भक्ति आन्दोलन के प्रसार में व्यक्ति केन्द्रित एकल प्रयासों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी , लेकिन आन्दोलन का स्वरूप निर्मित किया सम्प्रदायों और पंथों ने। रामानुजाचार्य के श्री सम्प्रदाय से लेकर गौड़ीय आचार्य चैतन्य महाप्रभु के चैतन्य सम्प्रदाय तक वैष्णव सम्प्रदायों की एक समृद्ध और अनवरत श्रृंखला है। दूसरी ओर कबीरपंथ से लेकर मलूक पंथ तक निर्गुणियाँ पंथों का सतत सिलसिला है जो भक्ति और सामाजिक आलोचना का स्वर एक साथ मुखरित करते हैं। सम्प्रदायों और पंथों को ध्यान में न रखें तो भक्ति आन्दोलन का स्वरूप और स्वभाव स्पष्ट नहीं होगा। ठीक इसी तरह नवजागरण में सभाओं और समाजों ने अपनी भूमिका निभायी है। ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, थियोसोफिकल सोसायटी, आर्य समाज, सत्य शोधक समाज, आत्मीय सभा, तत्त्वबोधिनी सभा आदि ने नवजागरण का ढाँचा खड़ा किया तथा उसके अन्तर्वस्तु का निर्माण भी किया है। कर्मेन्दु शिशिर उल्लेखनीय प्रयासों के अतिरिक्त उन छोटे-छोटे प्रयासों को भी महत्त्वपूर्ण मानते हैं जो इस दौर में अलग-अलग स्थानों पर दिखायी पड़े।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2013 |
Pulisher |
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