Bharat Ke Pracheen Bhasha Pariwar Aur Hindi Bhag – 3
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भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी-3
भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी नामक युगान्तरकारी ग्रन्थ का यह तीसरा और अंतिम खण्ड है। इसके पहले और दूसरे खण्ड में डॉ. रामविलास शर्मा ने क्रमशः ‘आर्य भाषा केन्द्र और हिन्दी जनपद’ तथा ‘इण्डोयूरोपियन परिवार की भारतीय पृष्ठभूमि’ पर विचार किया है और इस खण्ड में ‘नाग-द्रविड़-कोल और हिन्दी प्रदेश’ की विशेषताओं का व्यापक विवेचन-विश्लेषण सम्मिलित है।
भाषाविज्ञान सम्बन्धी अनेक मान्यताओं को अमान्य करार देनेवाले ग्रन्थ का यह तीसरा खण्ड पाँच अध्यायों में विभक्त है और अन्त में इसमें आठ शब्द-सूचियाँ भी शामिल की गई हैं। प्राचीन और नवीन, अनेकानेक भाषाओं में ध्वनिपरिवर्तन और अर्थविस्तार की प्रक्रिया तथा अपनी पारस्परिकता में समान ध्वन्यर्थवाले शब्द प्रतिरूपों की प्रामाणिक जानकारी के लिए इन सूचियों का विशिष्ट महत्त्व है।
इनके अलावा इस खण्ड में चौथे अध्याय का सम्बन्ध पुस्तक के तीनों खण्डों में विवेचित मूल समस्याओं से है, जिन पर रामविलासजी ने खासतौर से विचार करते हुए ध्वनि-परिवर्तन-सम्बन्धी उन विशेषताओं को रेखांकित किया है ‘जो आर्य और द्रविड़ भाषा-समुदायों में समान रूप से प्राप्त हैं और जिनकी सहायता से इण्डोयूरोपियन परिवार की आर्येतर भाषाओं के विकास की अनेक गुत्यियाँ सुलझाई जा सकती हैं।’
लेखक के शब्दों में, ‘पुस्तक के तीनों खण्ड परस्पर सम्बद्ध हैं’, अपरंच उनकी स्वतन्त्र सत्ता भी है। निश्चय ही अपनी समग्रता में यह ग्रन्थ न केवल भाषाविज्ञान सम्बन्धी भावी शोधालोचना को निर्णायक ढंग से प्रभावित करनेवाला है, बल्कि विश्व-समाज की सांगठनिक अवधारणाओं पर पुनर्विचार की माँग भी करता है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2008 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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