Deepshikha

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Deepshikha

Deepshikha

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Author: Mahadevi Verma

Availability: 9 in stock

Pages: 121

Year: 2021

Binding: Paperback

ISBN: 9788180313073

Language: Hindi

Publisher: Lokbharti Prakashan

Description

दीपशिखा

दीप-शिखा में मेरी कुछ ऐसी रचनाएं संग्रहीत हैं जिन्हें मैंने रंगरेखा की धुंधली पृष्ठभूमि देने का प्रयास किया है। सभी रचनाओं को ऐसी पीठिका देना न सम्भव होता है और न रूचिकर, अतः रचनाक्रम की दृष्टि से यह चित्रगीत बहुत बिखरे हुए ही रहेंगे।

मेरे गीत अध्यात्म के अमूर्त आकाश के नीचे लोक-गीतों की धरती पर पले हैं।

1 चिन्तन के कुछ क्षण 1 Se 40
2 दीप मेरे जल अकम्पित 43
3 पंथ होने दो अपरिचित 45
4 ओ चिर नीरव 47
5 प्राण हँस कर ले चला जब 49
6 सब बुझे दीपक जला लूँ 51
7 हुए झूल अक्षत 53
8 आज तार मिला चुकी हूँ 54
9 कहाँ से आये बादल काले 56
10 यह सपने सुकुमार 58
11 तरल मोती से नयन भरे 59
12 विहंगम-मधुर स्वर तेरे 60
13 जह यह दीप थके तब आना 62
14 यह मन्दिर का दीप 63
15 धूप-सा तन दीप-सी मैं 65
16 तू धूल-भरा ही आया 66
17 जो न प्रिय पहचान पाती 68
18 आँसुओं के देश में 69
19 गोधूली अब दीप जगा ले 71
20 मैं न यह पथ जानती री 73
21 झिप चली पलकें 74
22 मिट चली घटा अधीर 76
23 अलि कहाँ सन्देश भेजूँ 78
24 मोम-सा तन पुल चुका 79
25 कोई यह आँसू आज माँग ले जाता 81
26 मेघ-सी घिर 82
27 निमिष-से मेरे विरह के कल्प बीते 84
28 सब आँखों के आँसू उजले 85
29 फिर तुमने क्यों शूल बिछाये 87
30 मैं क्यों पूछूं यह 88
31 आज दे वरदान 90
32 प्राणों ने कहा कब दूर 91
33 सपने जगाती आ 93
34 मैं पलकों में पाल रही हूँ 95
35 गूंजती क्यों प्राण-वंशी 96
36 क्यों अश्रु न हो श्रृंगार मुझे 97
37 शेषमाया यामिनी 99
38 तेरी छाया में अमिट रंग 100
39 आँसू से धो आज 102
40 पथ मेरा निर्वाण बन गया 103
41 प्रिय मैं जो चित्र बना पाती 104
42 लौट जा, जो मलय मारुत के झकोरे 106
43 पूछता क्यों शेष कितनी रात 107
44 तुम्हारी बीन ही में बज रहे हें 108
45 तू भू के प्राणों का शतदल 109
46 पुजारी दीप कहीं सोता है 111
47 घिरती रहे रात 113
48 जग अपना भाता है 115
49 मैं चिर पथिक 117
50 मेरे ओ विहग-से गान 118
51 सजल है कितना सवेरा 119
52 अलि मैं कण-कण को जान चली 120

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Pages

Publishing Year

2021

Pulisher

Language

Hindi

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