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Description
नेपथ्य में हँसी
ये कविताएँ पिछले सात आठ बरसों में लिखी गई है। हमारे आसपास इस बीच बहुत तेजी से परिवर्तन हुए हैं। घटनाओं की गीत इतनी तेज और अप्रत्याशित बल्कि कहना चाहिये कि विस्मित कर देने वाली है कि उसे अव- धारणाओं में पकड़ना अगर असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो गया है। दृश्य गहरी मानवीय तकलीफों और बेचैनियों से भरा है । इन कविताओं में शायद इसके कुछ संकेत मिलें। शायद इसीलिए इन कविताओं में ‘मूड्स’ की बहुत भिन्नताएं हैं।
निराशा, उदासी और उन्माद के इस दृश्य के बीच भी उम्मीद बची है। और यह उम्मीद है, इस देश की विराट श्रमशील जनता-जों बहुत थोड़े में अपना गुजर-बसर करते हुए भी, ज्यादा से ज्यादा जगह को मनुष्य के रहने लायक और सुंदर बनाने में जुटी हैं। ये कविताएँ उस धुँधले उजाले को देख और दिखा सकें ऐसी मेरी इच्छा है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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