Bilanka Ramayana

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Bilanka Ramayana

Bilanka Ramayana

800.00 799.00

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800.00 799.00

Author: Yogeshwar Tripathi

Availability: 10 in stock

Pages: 512

Year: 2020

Binding: Hardbound

ISBN: 0

Language: Hindi

Publisher: Bhuvan Vani Trust

Description

बिलंका रामायण

प्रकाशकीय

भुवन वाणी ट्रस्ट द्वारा विभिन्न भाषाओं के प्रचुर वाड्मय के नागरी लिप्यन्तरण के प्रयास के अन्तर्गत ओड़िआ भाषा के लोकप्रिय ग्रन्थ बिलंका रामायण का नया संस्करण आपके समक्ष प्रस्तुत है।

उड़ीसा राज्य में प्रयुक्त उड़िया लिपि, पुरानी, नागरी की पूर्वशैली से विकसित हुई है किन्तु इस पर दक्षिण की तेलुगु एवं तमिल लिपियों का भी प्रभाव पड़ा, जिससे यह बहुत कठिन हो गई। कुछ लोग इसे पुरानी बंगला-लिपि से तथा कुछ इसे कुटिल (दे. बंगला लिपि) से निकली मानते हैं। इसके दो रूप करनी तथा ब्राह्मणी नाम से प्रसिद्ध है। ब्राह्मणी ताड़ पत्रों पर लिखने में प्रयुक्त होती है जबकि करनी कागज पर।

अधिकाधिक हि्न्दी-भाषियों को बिलंका रामायण सुग्राह्मय बनाने के उद्देश्य से इस नये संस्करण में कथानक का केवल गद्यरूप ही प्रकाशित किया गया है। हमारा विश्वास है कि इस प्रकार लिप्यन्तरित बिलंका रामायण का आकार काफी कम हो जाएगा और यह सुधी हिन्दी पाठकों को अपेक्षाकृत कम मूल्य पर उपलब्घ हो सकेगी।

 

अनुवादकीय

उड़ीसा वास के समय मैं जिन उड़िया ग्रन्थों के प्रति आकर्षित हुआ उनमें बिलंका रामायण भी एक थी। विश्राम के क्षणों में हमारे बगीचे से बहुधा सरस पदावली सुनकर मैं मुग्ध हो जाया करता। हमारा माली बड़ी लय के साथ लगभग नित्य ही गेय पदों के गाया करता था। एक दिन मैंने उससे पुस्तक ले ली और पढ़ने बैठ गया। मुझे बड़ा आनन्द आया। हमारे पारिवारिक जनों ने इसे नये कथानक को बड़े ध्यान से सुना। इस ग्रन्थ को मैंने कई बार आद्योपान्त पढ़ा। हमारे मित्रों ने भी इसका आनन्द लिया। अन्ततः अपने इस्पात कारखाने के अति व्यस्त जीवन में भी चमत्कृत कर दिया। उड़िया भाषा का सत्साहित्य बहुत ही सरल और सरस है।

बिलंका रामायण तो उड़िया के ग्रामीण अंचलों से लेकर नगर साहित्यिक जनों को प्रभाविक करती रही है इसकी भाषा सरल व बोधगम्य होते हुए माधुर्य गुण से अनुप्राणित है। इस ग्रन्थ के मूल लेखक भक्त कवि शारलादास जी है। इनकी महाभारत भी उड़ीसा में विशेशतः ग्रामीण अंचलों में जनप्रिय रही है। अपने पाठकों को ग्रन्थाकार विषय में कतिपय जानकारी करा देना आवश्यक समझता हूँ। शारलादास उड़िया साहित्य के सर्वप्रथम कवि है। उनके जीवन से सम्बन्धित अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित है। अन्तर्साक्ष्य के आधार पर यह सिद्ध होता है कि वह श्री जगन्नापुरी के महाराज गजपति गौड़ेश्वर कपिलेन्द्रदेव (सन् 1452 ई. से 1479 ई.) के समकालीन थे।

‘‘प्रणपत्ये खटइ कपिलेन्द्र नामे राजा।

तेत्रिश कोटि देवे चरणे जार पूजा।

बचपन में उनका नाम सिद्धेश्वर तथा चक्रधर परिड़ा था। बिलंका रामायण के रचनाकाल तक उनके ये ही नाम प्रचलित थे।

रामायण वृत्तांतकु निरंतरे घोष।

श्रीराम चरणे भजे सिद्धेश्वर दास।।

बइकुण्ठे जाई विष्णु आश्रारे रहइ

चक्रधर श्री अच्चुत पयर भजइ।।’’ (वि. रामायण)

परवर्ती काल में उनकी इष्टदेवी, जो ‘‘झंकड़वासनी’’ नाम से आज भी पूजित हैं, उन पर प्रसन्न हुई। उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई। उन्होंने अपने को शारलादेवी के अनन्य उपासक के रूप में परिचित करा कर अपना नाम शारलादास रखा।

जगन्माता जहुँ प्रसन्न मोते हेले।

शूद्रमुनि शारलादास नाम मोते देले।।(आश्रमिक पर्व)

शारलादास जी बचपन से ही मातृ-पितृ-सुख से वंचित रहे। उनका बाल्यजीवन उनके बड़े भाई परशुराम जी के आश्रय में व्यतीत हुआ था।

‘‘कनकपुर पाटणा घर पर्शुराम।

मुहिं तार अनुज शारलादास नाम।।;(मध्य पर्व)

उड़ीसा के आधुनिक कटक जिले में चित्रोत्पला नदी के किनारे स्थित ‘‘जंखरपुर पाटणा’’ इलाके के शारोल गाँव में उनका जन्म हुआ था, ऐसा बताया जाता है। परन्तु शारलादेवी के मन्दिर के समीपवर्ती ‘‘कालीनाभ’’ गाँव के पक्ष में किंवदन्ती अधिक है। शारलादास शक्ति के उपासक शाक्त थे। उनके पूर्वज शारलापीठ के परम्परागत पूजक थे। उनकी वंश-परम्परा ब्राह्मणेतर थी, क्योंकि उस समय ब्राह्मणेतर लोग ही देवी पूजा का कार्य करते थे। सम्भवतः उनकी उपजाति का नाम ‘‘मुनि’’ था जो अवैदिक शूद्र था। अतएव शारला जी ने अपना परिचय बार बार ‘‘शूद्रमुनि’’ के नाम से दिया है। उन्होंने यह भी कहा है कि न वह पण्डित है और न पढ़े-लिखे। शारला की कृपा से ही वह उनकी महिमा गाते हैं।

शारलादास जी का महाभारत संस्कृत महाभारत का अनुवाद नहीं है। उसी प्रकार उनकी अन्य कृतियाँ बिलंका रामायण तथा चण्डी पुराण भी अनूदित ग्रन्थ नहीं हैं। कथानक और भावपक्ष दोनों ही पूर्णतः मैंलिक हैं। शैलीगत नवीनता तो है ही। उनकी कुछ पंक्तियाँ सामान्य जनता के कण्ठ में बहुप्रचलित लोकोक्तियों तथा कहावतों का रूप ले चुकी है।

  1. झिमिट खेलरु महाभारत।
  2. कोकुआ भय।
  3. गंगाकहिले थिबि-गंगी कहिले जिबि।
  4. पहिले जुद्धरे भीम हारे

बिलंका रामायण और महाभारत का छन्द ‘‘दाण्डी-वृत्त’’ कहलाता है। प्रस्तुत छन्द के आदिप्रवर्तक स्वयं शारलादास हैं। पंक्तियों की वर्ण संख्या का बराबर न होना उसका प्रमुख लक्षण है। वार्णिक तथातुकान्त तो है परन्तु चरणों की वर्ण संख्या नौ से बत्तीस तक बढ़ भी जाती है। यथा-

‘‘खड्ग से बर जे नोहिला सन्तति।

समुद्रकुलरे राये नित्य आसिथिला नग्रकु समुद्र दश जोजने परिजन्ति।।’’

उन्होंने स्थानीय जीवन का यथार्थ वर्णन किया है। द्रोपदी और हिडिम्बा के प्रसंग में उड़िया नारी स्पष्टतः चित्रित है। उनकी रचनाएँ उड़िया जन-जीवन के अमर आलेख हैं।

अपने कार्य क्षेत्र से परिस्थितिवश मुझे कानपुर जाना पड़ा। गृहकार्यों के साथ ही साहित्यिक साधना भी चलती रही। ‘‘तपस्विनी’’ तो प्रकाशित हो चुकी थी। पर बिलंका रामायण अभी तक मुझ तक ही सीमित थी। मेरी इच्छा होती थी कि जैसे भी हो यह ग्रन्थ हिन्दी जगत में आना ही चाहिए। भाग्यवश मान्यवर पं. नन्दकुमार जी अवस्थी से भेंट हो गई। अवस्थी जी ने भुवन वाणी ट्रस्ट लखनऊ के माध्यम से इस ग्रन्थ को हिन्दी जगत में लाने की मुझे प्रेरणा दी ! मैंने ट्रस्ट के लिए इस ग्रन्थ को हिन्दी में लिप्यन्तरण सहित अनूदित किया। पूज्य अवस्थी जी की प्रेरणा एवं सौजन्य के फलस्वरूप मूल अड़िया काव्य का नागरी लिप्यन्तरण सहित भाषानुवाद आपके हाथों में आया। मैं समझ नहीं पा हा कि उनका आभार किन शब्दों में प्रकट करूँ। शारलादास के जीवन परिचय के लिए मैं अपने स्नेही बन्धु डॉ. अर्जुन सत्पथी, एम.ए., पी.एच.डी. अध्यक्ष हिन्दीविभाग, सरकारी कालेज राउरकेला (उड़ीसा) का आभारी हूँ। जिन अन्य सहयोगियों ने मुझे इस कार्य में सहायता दी है, उनका मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूँ।

शंकर सदन’

17/13, माल रोड कानपुर-1

कार्तिक पूर्णिमा

सन् 1984

विनीत योगेश्वर त्रिपाठी योगी

Additional information

Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2020

Pulisher

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