Bhawani Prasad Mishra
भवानीप्रसाद मिश्र
बीसवीं सदी की हिन्दी कविता में अपने अलग काव्य-मुहावरे और भाषा-दृष्टि के साथ-साथ स्वदेशी चेतना की तेजस्विता और कविता की प्रतिरोधक आवाज की पहचान बने भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 29 मार्च, 1913 को जिला होशंगाबाद के नर्मदा-तट के एक गाँव टिगरिया में हुआ। 1930 में उन्होंने लिखा-‘जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख।’
जीवन की शुरुआत मध्य प्रदेश के ही बैतूल जिले में एक पाठशाला खोलकर की किन्तु सन् बयालीस के भारत छोड़ो आन्दोलन में लगभग तीन साल का कैदी जीवन बिताने के बाद गांधी और उनके सहयोगियों के साथ रहे। कुछेक दिनों तक ‘कल्पना’ (हैदराबाद) के सम्पादकीय साथी रहे, फिल्मों में भी गए किन्तु थोड़े ही दिनों बाद बम्बई आकाशवाणी से होकर दिल्ली आ गए। जल्दी ही आकाशवाणी का दामन छोड़ ‘सम्पूर्ण गांधी वाड्मय’ के हिन्दी खंड के सम्पादक बने। बाद में ‘गांधी मार्ग’ जैसी विशिष्ट पत्रिका के सम्पादक के रूप में साहित्यिक पत्रकारिता की एक रचनात्मक धारा का प्रवर्तन करते रहे। आपातकाल के विरोध में लिखी कविताओं के नाते अत्यधिक चर्चित।
भवानी प्रसाद मिश्र रचनावली के कुल आठ खंडों के अलावा कवि के अन्य चर्चित कविता-संग्रह हैं–गीत फ़रोश, चकित है दुख, अँधेरी कविताएँ बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, कालजयी (खंडकाव्य), गांधी की पंचशती, मान सरोवर दिन, शरीर कविता, फसलें और फूल, त्रिकाल-संध्या, इद॑ न ममू, परिवर्तन जिए, अनाम, हुम आते हो आदि।
जिन्होंने मुझे रचा, कुछ नीति कुछ राजनीति आदि उनकी चर्चित गद्य-रचनाएँ हैं। दूसरा सप्तक (1951) के पहले कवि।
गीत फ़रोश, सन्नाटा, सतपुड़ा के जंगल, जेल में बरसात, चार कौए उर्फ चार हौवे कवि की बहुचर्चित कविताएँ हैं।
20 फरवरी, 1985 को गृहनगर नरसिंहपुर में हृदयाघात से आकस्मिक मृत्यु।