Chhagan Mohta
छगन मोहता
(1907-1986)
औपचारिक शिक्षा प्राथमिक स्तर तक भी पूर्ण नहीं की जा सकी।
पिता श्री गोविन्दलालजी ने बालक छगनलाल की अदम्य जिज्ञासा-वृत्ति को पहचान कर एक रूढ़िबद्ध वातावरण में भी ‘निरौपचारिक रीति से जब, जहाँ से, जिस से व जिस तरह से जो चाहूँ वह सीखने और पढ़ने की पूर्ण स्वतन्त्रता’ दी। दर्शन, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और अन्य विषयों का स्वतन्त्र अध्ययन-मनन।
प्रारम्भ में ही प्रजामण्डल के कार्यों के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी। महिला शिक्षा एवं प्रौढ़ शिक्षा आन्दोलन के प्रवर्तन में मुख्य भूमिका। भारतीय बौद्धिक एवं साहित्यिक परम्परा के निरन्तर अन्वेषण में आजीवन रत रहे।