Fyodor Dostoyevsky
फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की
बहुत कम ऐसे लेखक हैं, जिनके कृतित्व के बारे में, हर समय में, आलोचकों ने उससे अधिक परस्पर-विरोधी : दृष्टिकोण और व्याख्याएँ प्रस्तुत की होंगी जितना कि दोस्तोयेव्स्की के कृतित्व के बारे में। लेकिन यह भी सच है कि ऐसे लेखक भी इने-गिने ही हैं जिनकी कृतियों ने पूरी दुनिया में दोस्तोयेव्स्की के बराबर गहन दिलचस्पी पैदा की हो। इस सब के बावजूद, जो सच्चाई लगभग निर्विवाद है, वह यह कि फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की (1821-1881) न केवल उन्नीसवीं शताब्दी के क्रान्तिकारी जनवादी, मानवतावादी और यथार्थवादी रूसी साहित्य के नक्षत्रमंडल का एक ऐसा सितारा थे, जिसकी अपनी अलग और अनूठी चमक थी, बल्कि समूचे विश्व साहित्य के फलक पर उनकी गणना शेक्सपियर, रैबिले, दांते, गोएठे, बाल्ज़ाक और तोल्स्तोय के साथ की जाती है।
मानवीय कष्टों-सन्तापों की दुनिया, पददलित और अपमानित-अवमानित व्यक्ति की त्रासदी दोस्तोयेव्स्की के यथार्थवादी सृजन-कर्म का आधार हैं। मनोविश्लेषण की कला में अपनी महारत के जरिए दोस्तोयेव्स्की दिखलाते हैं कि किस तरह मनुष्य के आत्मसम्मान का दमन उसकी आत्मा को नष्ट कर देता है और उसकी चेतना को दो हिस्सों में बाँट देता है। साथ ही, वह यह भी दिखलाते हैं कि किसी व्यक्ति की अपनी निरर्थकता का अहसास यदि लगातार बना रहे तो प्रतिरोध की चाहत को जन्म देता है।