Girishwar Mishra
गिरीश्वर मिश्र
एक मनोविद्, विचारक एवं संस्कृति के अध्येता लेखक गिरीश्वर मिश्र हिंदी साहित्य के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। लेखन के अलावा अनुवाद और संपादन कर्म से भी जुड़े रहे श्री मिश्र की लिखित एवं संपादित अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं। पाँच दशकों के शैक्षिक एवं अकादमिक जीवन में गोरखपुर, इलाहाबाद, भोपाल तथा दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापन के बाद महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति (2014-2019) पद से सेवानिवृत्त हुए। समाज, शिक्षा, संस्कृति, भाषा ओर साहित्य से जुड़े प्रश्नों पर पत्न-पत्रिकाओं में नियमित लेखन करते रहे हैं, आज भी कर रहे हैं। अपने शैक्षिक-अकादमिक-सांस्कृतिक यात्रा-क्रम में लेखक ने अमरीका, रूस, चीन, जर्मनी, इंग्लैंड समेत अनेक अन्य देशों की यात्राएँ कीं तथा अनेक विदेशी विश्वविद्यालय/संस्थानों में फेलो रहे हैं। अनेक संस्था, सम्मेलन आदि के सम्मानित सदस्य भी रहे। लेखक की कुछ महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं-होने और न होने का सच, हिंदी भाषा और समाज, हिरना समझि बूझि बन चरना, भारत में शिक्षा : चुनौतियाँ और उपेक्षाएँ आदि। श्री मिश्र को अनेक सम्मान एवं पुरस्कार भी मिले हैं। सेवानिवृत्ति पश्चात् संप्रति स्वतंत्र रूप से लेखन तथा शोध कार्य कर रहे हैं।