Harimohan Jha

Harimohan Jha

हरिमोहन झा

जन्म : 18 सितम्बर, 1908; कुँवर बाजितपुर, वैशाली (बिहार)।

सन् 1932 में पटना विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एम.ए.। इसके बाद पटना विश्वविद्यालय में ही दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर और फिर विभागाध्यक्ष रहे।

अपने बहुमुखी रचनात्मक अवदान से मैथिली साहित्य की श्री-वृद्धि करनेवाले विशिष्ट लेखक। भारतीय दर्शन और संस्कृति-काव्य साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान के रूप में विशेष ख्याति अर्जित की। धर्म, दर्शन और इतिहास, पुराण के अस्वस्थ, लोकविरोधी प्रसंगों की दिलचस्प लेकिन कड़ी आलोचना। इस सन्दर्भ में ‘खट्टर काका’ जैसी बहुचर्चित व्यंग्यकृति विशेष उल्लेखनीय। मूल मैथिली में क़रीब 20 पुस्तकें प्रकाशित। कुछ कहानियों का हिन्दी, गुजराती और तमिल में अनुवाद।

प्रमुख कृतियाँ: ‘कन्यादान’, ‘द्विरागमन’ (उपन्यास); ‘प्रणम्य देवता’, ‘रंगशाला’ (हास्य कथाएँ); ‘खट्टर काका’ (व्यंग्य-कृति); ‘चरचरी’ (विधा-विविधा)।

निधन : 23 फरवरी, 1984

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