Harivansh Rai Bachchan

Harivansh Rai Bachchan

हरिवंशराय बच्चन

हरिवंशराय बच्चन का जन्म 27 नवंबर, 1907 को प्रयाग में हुआ था। उनकी शिक्षा म्युनिसिपल स्कूल, कायस्थ पाठशाला, गवर्नमेंट कालेज, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी और काशी विश्वविद्यालय में हुई। 1941 से 1952 तक वह इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी के लेक्चरर रहे। 1952 से 1954 तक इंग्लैण्ड में रहकर उन्होंने केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पी-एच.डी. की डिग्री प्राप्त की। विदेश से लौटकर उन्होंने एक वर्ष अपने पूर्व पद पर तथा कुछ मास आकाशवाणी, इलाहाबाद में काम किया। फिर सोलह वर्ष दिल्ली रहे—दस वर्ष विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ के पद पर और छह वर्ष राज्यसभा के मनोनीत सदस्य के रूप में। 18 जनवरी, 2003 को उनका स्वर्गवास हो गया।

बच्चन जी को उनकी आत्मकथा के लिए भारतीय साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार ‘सरस्वती सम्मान-1991’ से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो-एशियन राइटर्स कान्फ्रेंस का लोटस पुरस्कार भी मिल चुका है। राष्ट्रपति ने भी उन्हें ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया। हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने उन्हें ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि प्रदान की।

कृतियाँ :

कविताएं : मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, आकुल अंतर, बंगाल का काल, शादी के फूल, धार के इधर-उधर, त्रिभंगिमा, बहुत दिन बीते, जाल समेटा, मेरी श्रेष्ठ कविताएँ।

आत्मकथा : क्या भूलूं क्या याद करूं (खण्ड-1)

‘‘यह कथा बड़ी सरस और जीवंत बनी है। इसमें केवल बच्चन जी का परिवार और व्यक्तित्व ही नहीं उभरा है बल्कि उनके साथ समूचा काल और क्षेत्र भी अत्यंत जीवंत रूप में उभरकर सामने आ गए हैं।’’
नीड़ का निर्माण फिर (खण्ड-2)

…इस खण्ड की कथा में भी उपन्यास की-सी रोचकता है। भाषा में वही शैली का जादू है। इसमें जीवनीकार का अपारदर्शी सशक्त व्यक्तित्व अधिक गहरे रंगों में उभरा है।

बसेरे से दूर (खण्ड-3)

इंग्लैण्ड जाकर वहां अंग्रेज़ी साहित्य में डाक्टरेट प्राप्त करने की अवधि के अनोखे अनुभवों और संघर्षों का प्रेरणापूर्ण लेखा-जोखा। बच्चन जी के ‘बसेरे से दूर’ में संधर्ष के एक दौर की समाप्ति की झलक मिली, उनके ज्वलंत जीवन की ज्योति रेखा-सी।

‘दशद्वार’ से ‘सोपान’ तक (खण्ड-4)

आत्मकथा का चौथा समापन भाग; जब बच्चन जी भारत सरकार में हिन्दी सलाहकार बने, राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए और उन्हें नेहरू जी तथा देश के अन्य महान पुरुषों को निकट से देखने-सुनने और गुनने के अपूर्व अनुभव प्राप्त हुए। उस काल के साहित्यिक , सामाजिक और राजनैतिक परिदृश्य का सजीव चित्रण उपस्थित करते हैं।

अन्य : किंग लियर (हिन्दी अनुवाद), खैयाम की मधुशाला (अनुवाद)।

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