Ilina Sen & Zeba Imam

Ilina Sen & Zeba Imam

प्रो. इलीना सेन

इलीना सेन पिछले तीन दशक से महिलाओं और दूसरों के अधिकारों के लिए होनेवाले आन्दोलनों में सक्रिय रही हैं। शिलोंग, कोलकाता और दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से प्रशिक्षित इलीना का शोध और लेखन अधिकांशतः महिलाओं के राजनीति, जीविका सम्बन्धित विषयों, संवहनीय मुद्दों, कृषि-जैवविविधता और शांति पर आधारित रहा है। आप महात्मा गाँधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्विद्यालय, वर्धा और टाटा इंस्टीट्यूट ऑ$फ सोशल साइंस, मुंबई में प्रोफेसर रह चुकी हैं। आपकी प्रकाशित किताबों में प्रमुख हैं—’ए स्पेस विथिन द स्ट्रगल’ (1990) और ‘सुखवासिन : द माइग्रेंट वुमन ऑफ छत्तीसगढ़’ (1995) हैं।

डॉ. ज़ेबा इमाम

ज़ेबा इमाम का पालन-पोषण अलीगढ़  (उत्तर प्रदेश) में हुआ, जहाँ उनके अब्बू अंग्रेजी साहित्य के सेक्युलर प्रोफेसर थे। यहाँ सेक्युलर शब्द पर इसलिए जोर दिया जा रहा है क्योंकि ज़ेबा ने हमेशा कहा है कि वो दिवाली पर मिठाई, क्रिसमस पर केक और ईद पर सेवैयाँ खाकर बड़ी हुई हैं। उन्होंने स्नातक अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय से किया और आगे का अध्ययन जामिया मिलिया इस्लामिया में और पी-एच.डी. टेक्सास यूनिवर्सिटी, यू.एस.ए. से। आजकल आप कम्बोडिया और यू.एस. के सोशल सेक्टर में काम करती हैं। जेंडर और सेकुलरिज्म पर लेखन के अलावा आपकी पॉटरी में भी विशेष दिलचस्पी रही है।

डॉ. सुप्रिया पाठक

18 जनवरी, 1983, सासाराम (बिहार) में जन्मी डॉ. सुप्रिया ने अपने शोध में प्रतिरोध की संस्कृति, नुक्कड़ नाटक और महिलाएँ, पारसी रंगमंच से नुक्कड़ नाटकों तक का निर्देशन एवं अभिनय किया है।

उनकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें हैं—स्त्री एवं रंगमंच, धर्म एवं जेंडर : धर्म संस्था के जरिए जेंडरगत मानस का निर्माण, (सह-संपादन)। साथ ही विभिन्न पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं में कई विषयों पर आलेख प्रकाशित। उनके विमर्शों में मिथकों में स्त्री अस्मिता और भीष्म साहनी; राष्ट्र, आख्यान एवं राष्ट्रवाद की परिधि में जेंडर के प्रश्न; स्त्री अध्ययन का वर्तमान भारतीय परिदृश्य; हिंदी साहित्य में स्त्री-विमर्श एवं समकालीन चुनौतियाँ, इत्यादि प्रमुख हैं।

संपर्क : डी-1, शमशेर संकुल, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, गांधी हिल्स, वर्धा, महाराष्ट्र-442005

ई-मेल : womenstudieswardha@gmail.com

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