Khwaja Altaf Hussain 'Hali'
ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली
मशहूर शाइर, आलोचक और जीवनी-लेखक ख़्वाजा अल्ताफ़ हुसैन ‘हाली’ का जन्म सन् 1837 में पानीपत में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा वहीं हुई। बाद में वे दिल्ली चले गए जहाँ उन्होंने आगे की पढ़ाई की। दिल्ली में उन्हें मशहूर शाइर मिर्ज़ा ग़ालिब का साथ मिला। हाली का जहाँगीराबाद के नवाब मुस्तफ़ा ख़ान शेफ़्ता से भी लम्बा रिश्ता रहा। हाली ने लाहौर के पंजाब गवर्नमेंट बुक डिपो में काम किया। दिल्ली के एँग्लो अरेबिक स्कूल में भी पढ़ाया। सन् 1879 में उन्होंने ‘मुसद्दस-मद्द-ओ-जज़्र-ए-इस्लाम’ लिखा जो ‘मुसद्दस-ए-हाली’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसके अलावा उन्होंने ‘यादगार-ए-ग़ालिब’, ‘हयात-ए-सादी’, ‘हयात-ए-जावेद’ की भी रचना की।
1904 में ब्रिटिश सरकार ने हाली को ‘शम्सुल-उलमा’ के ख़िताब से नवाज़ा। दिसम्बर, 1914 में उनका निधन हुआ।
अनुवादक के बारे में
अब्दुल बिस्मिल्लाह
हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार अब्दुल बिस्मिल्लाह का जन्म 5 जुलाई, 1949 को उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद के बलापुर गाँव में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. तथा डी.फिल्. किया। ‘झीनी झीनी बीनी चदरिया’, ‘मुखड़ा क्या देखे’, ‘अपवित्र आख्यान’, ‘कुठाँव’ आदि आठ उपन्यास और सात कहानी संग्रह प्रकाशित हैं। अन्य विधाओं में भी लिखा है। ‘झीनी झीनी बीनी चदरिया’ उपन्यास विशेष रूप से चर्चित तथा अंग्रेज़ी और उर्दू में भी प्रकाशित है। उनके कई उपन्यास और अनेक कहानियाँ विभिन्न भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनूदित हुए हैं। उन्होंने मौलिक लेखन के अतिरिक्त उर्दू साहित्य की कई ख्यातिलब्ध रचनाओं का हिन्दी में लिप्यन्तरण और अनुवाद भी किया, जिनमें फ़ैज़ अहमद ‘फ़ैज़’ का कविता-समग्र ‘सारे सुखन हमारे’ बहुचर्चित रहा है।
‘सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड’ समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली के हिन्दी विभाग में प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष रहे। अब सेवानिवृत्त।