Prabhakar Shrotriya
प्रभाकर श्रोत्रिय
मध्य प्रदेश के जावरा जनपद में 19 दिसंबर, 1938 में जन्मे प्रो. प्रभाकर श्रोत्रिय निबंध, नाटक, आलोचना, साक्षात्कार, संपादन और अनुवाद आदि विधाओं की पचास से अधिक पुस्तकों के सर्जक तो बाद में ठहरे, पी एच.डी और डीलिट् होकर भोपाल में प्रोफेसर पहले हो गए। भारतीय ज्ञानपीठ (नई दिल्ली), भारतीय भाषा परिषद (कोलकाता) के निदेशक तथा मध्यप्रदेश साहित्य परिषद् (भोपाल) के सचिव भी रहे। साक्षात्कार, अक्षरा, वागर्थ, नया ज्ञानोदय, पूर्वग्रह और समकालीन भारतीय साहित्य जैसी पत्रिकाओं के संपादक रहे श्रोत्रिय जी की प्रमुख कृतियां हैं – कविता की तीसरी आंख, कालयात्री है कविता, रचना एक यातना है, जयशंकर प्रसाद की प्रासंगिकता, मेघदूत : एक अंतर्यात्रा, शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहता, कवि परंपरा (आलोचना), सौंदर्य का तात्पर्य, समय का विवेक, समय समाज साहित्य, सर्जना का अग्निपथ, प्रजा का अमूर्तन, समय में विचार और बाजारवाद में हिंदी (निबंध), इला, सांच कहूं तो और फिर से जहांपनाह (नाटक) आदि। उनके सृजन पर केंद्रित ‘आलोचना की तीसरी परंपरा’ (सं. : उर्मिला शिरीष), इला और प्रभाकर श्रोत्रिय के नाटक (सं. : विभु कुमार) जैसे ग्रंथ भी प्रकाशित। आचार्य रामचंद्र शुक्ल पुरस्कार, आचार्य नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार, शारदा सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान और शताब्दी सम्मान तो उन्हें मिले ही, के.के. बिड़ला फाउंडेशन की फेलोशिप भी प्राप्त हुई। 5 सितंबर, 2016 को गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) के उपनगर इंदिरापुरम में विडंबनाओं से भरे मनुष्य जीवन को त्याग कर वे अनंत यात्रा पर निकल गए।