Punya Prasoon Vajpayee
पुण्य प्रसून वाजपेयी
समाज के अन्तर्विरोध को बतौर पत्रकार टटोलना फ़ितरत है। एक ओर सत्ता का गुदगुदापन तो दूसरी ओर आम आदमी की खुरदुरी ज़मीन के सच को मुद्दों के ज़रिए लाने का प्रयास। विगत कई सालों से देश के हर उस क्षेत्र और लोगों के बीच जाकर उस आक्रोश को समझने का प्रयास जिसके बूते सत्ता या सरकार की नीतियों को ख़ारिज कर आन्दोलन खड़ा करने की कवायद हो रही है? प्रिंट से विज़ुअल मीडियम तक में नक्सली ज़मीन से लेकर कश्मीर की वादियों में लगनेवाले आज़ादी के नारों का सच कई तरह से कई बार रिपोर्टों में उभारा। इसी दौर में ‘लोकमत समाचार’, ‘चाणक्य’, ‘संडे ऑब्ज़र्वर’, ‘संडे मेल’, ‘दिनमान टाइम्स’, ‘जनसत्ता’ सरीखे समाचार पत्रों में काम करना, 1996 में टी.वी. समाचार चैनल ‘आजतक’ से जुड़ना, दिसम्बर 2000 में ‘आजतक’ के 24 घंटे न्यूज़ चैनल लांच होने के बाद पहली बार पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर ‘पीओके’ से रिपोर्ट उल्लेखनीय रहा। इसके साथ ही एल.ओ.सी. पार आतंकवादी कैम्पों की हक़ीक़त और लश्कर-ए-तोएबा के मुखिया मो. हाफ़िज़ सईद का इंटरव्यू लिया। जनवरी 2003 से अप्रैल 2004 तक ‘एनडीटीवी इंडिया’ न्यूज़ चैनल की शुरुआत से जुड़े। एंकरिंग और इंटरव्यू प्रोग्राम ‘कशमकश’ के ज़रिए टी.वी. पत्रकारिता में नायाब प्रोग्राम की शुरुआत की। दोबारा ‘आजतक’ में लौटे। इस पूरे दौर में संसद पर आतंकवादी हमला, फूलन की हत्या, मुशर्रफ़ की कश्मीर यात्रा, एन.डी.ए. सरकार के ‘शाइनिंग इंडिया’ कैम्पेन के फेल होने से लेकर अमेरिका के साथ परमाणु समझौते जैसे संवेदनशील मुद्दों से राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय मसलों पर एंकरिंग-रिपोर्टिंग की। हिन्दी न्यूज़ चैनलों के एकमात्र पत्रकार के तौर पर 2005 के लिए ‘रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड’ से तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा सम्मानित किए गए।
फ़िलहाल स्वतंत्र पत्रकारिता।