R Krishnmurti kalki

R Krishnmurti kalki

श्री रा. कृष्णमूर्ति ‘कल्कि’ (9 सितम्बर 1899-5 दिसम्बर 1958) का जन्म तंजावूर (तंजौर) ज़िले के मायूरम्‌ नगर के पास स्थित बुद्धमंगलम्‌ नामक ग्राम में हुआ। उनके पिता श्रीरामस्वामी ऐयर्‌ मणल्मेडु ग्राम में पटवारी थे। ‘कल्कि’ ने आरम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में और फिर मायूरम्‌ के नगरपालिका स्कूल में प्राप्त की। अर्थाभाव के कारण उनकी पढ़ाई रुक गई और अपने गाँव लौटकर वे पिता से ही पढ़ते रहे और साथ ही कथा-प्रवचन करते रहे।

युवावस्था में वे तिरुच्चि (तिरुचिरापल्ली) नेशनल कॉलेज के थर्ड फ़ॉर्म में भरती हुए। वहीं माध्यमिक पाठशाला की अन्तिम परीक्षा के एक सप्ताह पूर्व वे महात्मा गाँधी के आह्वान पर पाठशाला छोड़कर, असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित हो, जेल चले गए। बाद में, खद्दर की दुकान में काम करते हुए, काँग्रेस का प्रचार किया। 1921 ई. में प्रिंस ऑव्‌ वेल्स का बहिष्कार करने के सिलसिले में उन्हें करूर में एक वर्ष का कारावास झेलना पड़ा। 1923 ई. में वे ‘नवशक्ति’ से जुड़े और ‘तुम्बि’ (भ्रमर) एवं ‘तमिल्-त-तेनी’ (तमिल मधुमक्षिका) उपनामों से भी लेख लिखते रहे। 1925 ई. में उनका आयुष्मती रुक्मिणी से विवाह हुआ।

1928 ई. में चक्रवर्ती राजगोपालचारी द्वारा मद्य-निषेध के प्रचारार्थ आरम्भ की गई ‘विमोचन’ नामक पत्रिका में कार्य करने के लिए वे गाँधी आश्रम (तिरुच्चङ्गोडु) रहने लगे। इसी बीच इनके ‘कल्कि’ उपनाम से लिखे कुछ लेख ‘आनंदविकटन्’ (आनन्द-हास्य) नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए। कुछ ही मास बाद उन्हें इस पत्रिका का सम्पादन-भार सौंपा गया।

सन् 1941 में ‘कल्कि’ ने सत्याग्रह के कारण तीन मास का कठोर कारावास-दण्ड होगा। अपने मित्र सदाशिवन् के साथ मिलकर उन्होंने ‘कल्कि’ नामक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया, जो पहले पाक्षिक, फिर महीने में तीन और अन्ततः साप्ताहिक के रूप में प्रकाशित होने लगी। इसी पत्रिका में उनके पार्थिवन् कनवु (पार्थिव का सपना), शिवकामियिन् शपथम् (शिवकामी की शपथ), पॉन्नियिन् शल्वन् (कावेरी का लाड़ला) तथा साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत अलै ओशै (तरंग-ध्वनि) आदि ऐतिहासिक उपन्यास प्राकशित हुए। ‘कल्कि’ ने न केवल तमिल साहित्य के समकालीन, बल्कि अनेक युवा लेखकों को प्रोत्साहित कर तमिल साहित्य की अभिवृद्धि में योग दिया।

‘कल्कि’ ने कई लोकप्रिय गीतों की भी रचना की। ‘मीरा’ नामक चित्रपट के लिए रचे इनके गीत बेहद लोकप्रिय हुए थे, जिन्हें एम.एस. शुभलक्ष्मी ने गाया था।

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