Rajan Parasher, Shiv Charran `Pipil'
राजन पराशर ने नौकरशाही, लालफीताशाही और अफसरशाही को न केवल नजदीक से झेला है अपितु बेबाक व सरल चित्रण भी किया है। उन्होंने बाबू से अफसर तक बन कर देखा है वह भी रक्षा लेखक नियंत्रक जैसे विभाग में इसीलिये वे बाबुओं के दर्द को भी जानते हैं और अफसर की मजबूरियों को भी। अफसर बाबू के बिना चल भी नहीं सकता और उससे दूरियां भी बनाये रखना चाहता है। इस संदर्भ में 52 नाटिकाओं का उनका दफतर नामा भी बड़ा प्रसिद्ध रहा है। जिस पर सीरियल भी बना था।
इस संकलन में उनकी प्रारंभिक से लेकर अब तक की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएं है जो केवल दफतर के वातावरण पर ही नहीं, अपितु समाज व राजनैतिक विसंगतियों पर भी तीखे हास्य-व्यंग का प्रहार करती हैं। उनका व्यंग आपको गुदगुदाता है तो हंसाता भी है पर साथ में बड़ा तीखा वार भी करता है जो आपको सोचने-समझने को विवश कर देता है। उनके व्यंग में न कहीं चाटूकारिता है तथा न बनावट व शब्दाडंबर अपितु बेलाग बात कहने की कला है। भाषा सीधी-साधी है पर मार गहरी करती है। खरी बात कहने व कटु सत्य को उजागर करना हर किसी के बस की बात नहीं होती, वह बात इस पुस्तक में नजर आयेगी।
शिवचरन सिंह ‘पिपिल’
पिता : स्व. गरीबा सिंहए
जन्म : 10 जुलाई 1941 को ग्राम मुकेश, पोस्ट सलेमपुर, जिला बुलन्दशहर (य.पी.)
शिक्षा : एम.ए. (समाजशास्त्र) दिनांक 24.2.1962 से 19.10.1973 तक भारत के रक्षा लेखा नियंखक के परिवेक्षक के पद पर सेवारत। दिनांक 20.12.1975 को उत्तर प्रदेश सरकार के श्रम मंत्रालय के अधीन श्रम विभाग में विभिन्न पदों पर करने के पश्चात् दिनांक 31.7.1999 को उपश्रमायुक्त उत्तर प्रदेश के पद से मेरठ कार्यालय से सेवा निवृत।
साहित्यिक कार्य : नसीराबाद में ‘मरीचका’ नाम कविता संग्रह का सह सम्पादक रहा। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कविताये तथा गीत प्रकाशित। “शब्द उस पार के” नामक कविता संग्रह का प्रकाशन।
सम्प्रति : “नई उमंग” नामक सामाजिक संस्था का संचालन। संस्था के माध्यम से बालक-बालिकाओं, बाल श्रमिकों एवं शोषित महिलाओं के कानूनी अधिकारों उनके स्वास्थ्य, पोष्टिक आहार के सम्बन्ध में जागरुकता शिविरों से कामायोजना गरीब बच्चों की शिक्षा तथा गरीब महिलाओं के कल्याण है, व्यवसायिक प्रशिक्षण, स्वतंत्र लेखन।