Rohini Bhate
रोहिणी भाटे
‘लहजा’ में ग्रथित या संकलित हो रहा मेरा यह संग्रह लेखन की अलग-अलग विधाओं का एक सहज मेल है। इसमें सम्मिलित हैं—विभिन्न स्मारिकाओं में और कुछ पत्रिकाओं के विशेष संस्करणों में पूर्व प्रकाशित मेरे कुछ शोध-निबन्ध, नृत्य-संगोष्ठियों में प्रस्तुत किए गए मेरे छोटे-बड़े आलेख, तथा मेरे कुछ काव्यात्मक भाष्य। विभिन्न समयान्तरालों में लिखे गए इन सभी आलेखों में मेरा चिन्तन क्रमश: प्रतिबिम्बित है।
वैसे कहा जाए तो किसी एक क्षण में नृत्य ने मुझे जो अमृतदंश किया। उसने मुझ नर्तकी को कला के साथ कोमलता से, और क्रमश: जुड़ पानेवाली ‘रुचि’, ‘इच्छा’ और ‘उपजीविका’ आदि मुक़ामों के आर-पार ले जाकर मुझे नर्तक-वृत्ति के कवच-कुंडल पहनाकर नृत्य-क्षेत्र के विशाल आँगन में ला खड़ा कर दिया—ऐन उसी क्षण से नृत्य-विषय पर मेरा चिन्तन-मनन जारी रहा है, जिसे मैंने सूझ-बूझ के साथ ‘लहजा’ नाम दिया है।
लहजा! ‘लहजा’ यानी मेरे लिए एक-एक क्षण के रूप में सतत बहता हुआ अनाहत काल। उसमें से उभरते हुए प्रसंग और उनके परिणाम, जो हमारे विचार, उच्चार और आचारों को बदलकर रख देते हैं।
‘लहजा’ यानी एक साक्षेपी दृष्टिक्षेप और उसकी परिधि में समानेवाली कार्यकारणात्मक सृष्टि भी। गर्भित अर्थ का गुंजन सूचित करनेवाले काव्यशास्त्र की ‘ध्वनि भी है लहजा!
इस प्रकार सर्वार्थों को घेरकर रखनेवाला ‘लहजा’ मेरे ‘ल-ह-जा’ में धुँधला ही सही पर प्रतिबिम्बित ज़रूर हुआ है…।