Vijayendra Snatak
विजयेन्द्र स्नातक
स्वर्गीय डॉ. विजयेन्द्र स्नातक (1914-1998) ने गुरुकुल विश्वविद्यालय, वृंदावन, बनारस और पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर से क्रमशः सिद्धांत शिरोमणि, साहित्य शास्त्री तथा शास्त्री की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। आगरा विश्वविद्यालय से हिन्दी-संस्कृत में एम. ए. तथा दिल्ली विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. उपाधि प्राप्त कर उन्होंने विभिन्न महाविद्यालयों में दस वर्ष अध्यापन किया। वर्ष 1947 में रामजस कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) में अध्यापन के बाद वे दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी एम.ए. विषय के सर्वप्रथम अध्यापक नियुक्त हुए और तैंतीस वर्षों तक इस विश्वविद्यालय से जुड़े रहने के बाद 1979 में हिन्दी विभाग के प्रोफ़ेसर तथा विभागाध्यक्ष पद से सेवामुक्त हुए।
साहित्य वाचस्पति, विद्या वारिधि, विद्या मार्तण्ड (डी. लिट्.), भारत भाषा-भूषण, साहित्य-भूषण आदि उपाधियों तथा पुरस्कारों एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के ‘भारत भारती’ सम्मान से अलंकृत, हिन्दी के मूर्धन्य विद्वान साहित्यकार डॉ. स्नातक की चौबीस मौलिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनका शोध-प्रबंध भक्ति साहित्य का मानक ग्रंथ समझा जाता है। कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथों के संपादन के अलावा साहित्य समालोचना, संस्कृति, धर्म, दर्शन, अध्यात्म आदि विषयों पर उनके गंभीर लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं।
हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए वे हिन्दी साहित्य सम्मेलन, सम्मेलन, दिल्ली , ज्ञानपीठ पुरस्कार समिति, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार समिति, केन्द्रीय वैज्ञानिक शब्दावली आयोग (भारत सरकार), हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश (लखनऊ), साहित्य अकादेमी, हिन्दी अकादेमी (दिल्ली) आदि संस्थाओं से संबद्ध रहे।
समीक्षात्मक निबंध, चिंतन के क्षण विमर्श के क्षण, अनुभूति के क्षण शुक्ल, आधुनिक हिन्दी साहित्य श्री वल्लभाचार्य, स्मृति शेष मेरे समकालीन, साहित्य और संस्कृति के प्रहरी, विचार विविधा और राधावल्लभ संप्रदाय : सिद्धांत और साहित्य उनकी उल्लेख्य कृतियाँ हैं।