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Description
1084 वें की माँ
आजादी से समानता, न्याय और समृद्धि के सपने जुड़े थे। लेकिन सातवें दशक में मोहभंग हुआ और सकी तीव्रतम अभिव्यक्ति नक्सलवादी आन्दोलन में हुई। इस आन्दोलन ने मध्य वर्ग को झकझोर डाला। अभिजात कुल में उत्पन्न व्रती जैसे मेधावी नौजवानों ने इसमें आहुति दी और मुर्दाघर में पड़ी लाश नंबर १०८४ बन गया। उसकी माँ व्रती के जीवित रहते नहीं समझ पाई लेकिन जब समझ आया तब व्रती दुनिया में नहीं था।
१०८४वे की माँ महज एक विशिष्ठ कालखंड का दस्तावेज नहीं, विद्रोह की सनातन कथा भी है। यह करुणा ही नहीं, क्रोध का भी जनक है और व्रती जैसे लाखों नौजवानों की प्रेरणा का स्रोत भी। लीक से हटकर लेखन, वंचितों-शोषितों के लिए समाज में सम्मानजनक स्थान के लिए प्रतिबद्ध महाश्वेता देवी की यह सर्वाधिक प्रसिद्धि कृति है। इस उपन्यास को कई भाषाओ में सराहना मिली और अब इस विहाल्कारी उपन्यास पर गोविंद निहलानी की फिल्म भी बन चुकी है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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