60 Ke Bad Ki Kahaniyan

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60 Ke Bad Ki Kahaniyan

60 Ke Bad Ki Kahaniyan

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Author: Vijay Mohan Singh

Availability: Out of stock

Pages: 287

Year: 2017

Binding: Hardbound

ISBN: 9789352211036

Language: Hindi

Publisher: Lokbharti Prakashan

Description

60 के बाद की कहानियाँ

सन् 1965 के सितम्बर महीने में जब यह संकलन पहली बार छपकर आया, तब तक इसमें सम्मिलित 14 कहानीकारों में से किसी का भी कोई कहानी-संग्रह प्रकाशित नहीं हुआ था। सबकी तीन, चार, पाँच कहानियाँ इधर-उधर पत्र-पत्रिकाओं में छपी थीं। इस ‘यूथ ब्रिगेड’ की संरचना का आइडिया श्री (स्व.) विजयमोहन सिंह के दिमाग़ की उपज था। इसे साकार करने का सारा श्रेय उन्हीं को जाता है! मोटा-मोटी 15 से 20 बिल्कुल नए और लगभग अनछपे कहानीकारों से पत्र-व्यवहार और अनुमति लेकर (और कुछ की अनुमति न मिलने के कारण) उन्होंने हर कहानीकार की दो-दो कहानियों के साथ इस संग्रह की योजना को रूप दिया। आश्चर्यजनक रूप से इन कथाकारों में उन्होंने कुछ ऐसे प्वाइंट्स ढूँढ़ निकाले, जो पूर्ववर्ती कथा-रचना से इन्हें अलग करते थे। वह मुख्य प्वाइंट है—’सम्बन्धों से मोहभंग’। माँ-बाप, भाई-बहन, प्रकृति और मनुष्य-जीवन की आत्मीयता का परिचय और परम्परित संसार इन कहानीकारों की कथा-रचनाओं से लगभग ग़ायब दिखता है।

इस संकलन के सभी कथाकारों के वास्तविक जीवन में सबकी माँएँ हैं, पिता हैं, भाई-बहनें हैं, पड़ोस है, सम्पूर्ण जीवन का एक भरा-पूरा संसार है, लेकिन कहानियों में आए पात्रों के जीवन और व्यवहार से उनका रिश्ता एक दार्शनिक खिन्नता का है। प्रेमल रोमांस जैसे ग़ायब है और जीवन की विचित्र-सी हबड़-दबड में एक नीरस-निरर्थक अवाजाही है। क्या यह एक दार्शनिक उपक्रम है जो सामाजिक-पारवारिक-राजनीतिक विच्छिन्‍नता से उत्पन्न हुआ है या एक विराग और अवसाद की स्थिति है जो आज़ादी के बाद पैदा हुई है? जीवन विराटता का एक समूहीकरण नहीं, बल्कि एक विचित्र-सा बिखराव का संकेत देता है। चुनौतियों का अभाव है और विरासत में मिली और आगे आनेवाली एक घिसट का संकेत है। आज़ादी के बाद उसकी विचित्र क़‍िस्म की निरर्थकता ही इन कथाकारों को एक नई दुनिया में ला खड़ा करती है। वह दुनिया आज भी जस-की-तस है।

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Authors

Binding

Hardbound

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Publishing Year

2017

Pulisher

Language

Hindi

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