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Description
आधी आबादी का संघर्ष
ममता जैतली राजस्थान में देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा रजवाड़ों और जागीरदारों का जबर्दस्त दबदबा रहा, लेकिन जैसे ही सामन्ती व्यवस्था हटी तो औरतों के लिए अवसर आए, शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ। अपनी स्थिति पर उनके बीच चर्चा व मंथन की शुरुआत हुई तथा राजस्थान की आम औरतों ने अपनी आवाज को बुलन्द करना शुरू किया। यह एक पुनर्जागरण की शुरुआत थी।
राजस्थान में कार्यरत कई स्वयंसेवी संस्थाएँ जो औरतों के मुद्दों पर काम करती थीं, उन्होंने संस्थाओं में घरेलू हिंसा, लैंगिक भेदभाव तथा बलात्कार जैसे मुद्दों पर चर्चाओं के माध्यम से जोरदार माहौल बनाया। सन् 1985 में एक महिला मेले के दौरान पूरे राजस्थान से आई औरतों ने किशनगढ़ क्षेत्रा में बलात्कार जैसी सामाजिक बुराई के विरुद्ध एक रैली निकाली।
मजदूर महिलाओं को सड़क पर उतरकर, मुट्ठी बाँधकर, आक्रोश के साथ बुलन्द नारे लगाते, मंचों पर अत्याचारों के विरुद्ध बेखौफ बोलते देखकर मध्यवर्गीय औरतों में भी हिम्मत आई। अक्सर घर-परिवार तक ही सीमित रहकर शोषण व जुल्म को सहनेवाली औरतों ने भी दहेज, घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों के खिलाफ उठ खड़ी होने का साहस जुटाया तथा महिलाओं पर हिंसा का प्रभावी विरोध शुरू किया। नगरीय समुदाय की मध्यवर्गीय औरतों तथा विश्वविद्यालय की महिलाएँ, जिन्होंने घरेलू हिंसा के मुद्दे से जुड़कर काम शुरू किया, अब वे महिला आन्दोलन की नेतृत्वकर्त्री बनकर औरतों के कई मुद्दों पर जमकर संघर्ष करती हुई नजर आती हैं।
एक उल्लेखनीय बात और भी रही कि राजस्थान के महिला आन्दोलन की बागडोर मुख्यतः मजदूर महिलाओं के हाथों में रही इसलिए उसने कभी भी समाज के ध्रुवीकरण का रास्ता नहीं लिया। कहना चाहिए कि इस आन्दोलन का रुझान पुरुषों के खिलाफ न होकर बराबरी और अवसरों की समानता की तलाश की ओर ही अधिक रहा। विविधा महिला आलेखन एवं सन्दर्भ केन्द्र व विविधा फीचर्स, जयपुर ने राजस्थान की आधी आबादी के गुमनाम सफर का इस पुस्तक में दस्तावेजीकरण करने का काम किया है। यह केवल राजस्थान ही नहीं, बल्कि भारतीय महिला आन्दोलन के स्वरूप को समझने का एक सार्थक उपक्रम है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2011 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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