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Description
आधुनिक रंगकर्म का स्वर्ण-काल
यह पुस्तक प्रत्यक्षः आधुनिक हिन्दी और परोक्षतः भारतीय रंगकर्म के स्वर्ण-काल पर एक चश्मदीद का हल्फिया बयान है। इतिहास-निर्माताओं के पास इतना समय नहीं होता कि वे उसे लिपिबद्ध भी कर सकें। यह काम उनके समकालीन इतिहासकारों और समीक्षकों का होता है। यह पुस्तक अपने हिस्से के उसी ऐतिहासिक एवं गम्भीर उत्तरदायित्व के निर्वहन का एक प्रयास है। इसमें हमारे समकाल वैविध्यपूर्ण, व्यापक, समृद्ध एवं प्रयोगशील रंगकर्म के इतिहास की प्रामाणिक आधार-सामग्री का दस्तावेज़ीकरण किया गया है। यह पुस्तक प्रत्यक्षदर्शी लेखक द्वारा लिखी गई साठोत्तर हिन्दी/भारतीय रंगकर्म की लगभग चार दशकों में प्रस्तुत नाट्य प्रस्तुतियों की, पत्र-पत्रिकाओं में पूर्वप्रकाशित समीक्षाओं, अनुवीक्षाओं (रिव्यूज़), टिप्पणियों, रपटों और चर्चाओं के, सम्पादित-संशोधित रूप का संकलन है।
इस पुस्तक में लेखक ने समकालीन रंग-परिदृश्य की बहुसंख्य नाट्य-प्रस्तुतियों के मूल्य एवं महत्व का आकलन करते हुए उन्हें प्रामाणिक तथ्यों और ब्यौरों के साथ काल-क्रम में संयोजित किया है। विवेच्य काल-खण्ड में सक्रिय राष्ट्रीय स्तर का शायद ही कोई नाट्य-दल, नाटककार, निर्देशक, अभिनेता और पार्श्वकर्मी ऐसा होगा जिसके प्रतिनिधि रंगकर्म की चर्चा-समीक्षा इस पुस्तक में न की गई हो।
हमारा विश्वास है कि हिन्दी के वरिष्ठ नाट्यालोचक की वह पुस्तक आधुनिक हिन्दी/भारतीय रंगान्दोलन के इस ऐतिहासिक दौर के नाट्य-कर्म के प्रबुद्ध अध्येताओं, प्राध्यापकों, समीक्षकों, शोधार्थियों और इतिहास लेखकों के लिए समान रूप से उपयोगी तथा महत्वपूर्ण संदर्भ-ग्रंथ सिद्ध होगी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Publishing Year | 2019 |
Pages | |
Pulisher |
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