Aalochana Aur Jantantra

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Aalochana Aur Jantantra

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Author: Namvar Singh

Availability: 5 in stock

Pages: 312

Year: 2023

Binding: Paperback

ISBN: 9789355188298

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

आलोचना और जनतंत्र

आलोचक की हैसियत बीज की-सी है और जब मुझे बीज भाषण देने का अवसर मिला है तो निराला की एक बहुत पुरानी कविता याद आती है-‘हिन्दी के सुमनों के प्रति’- जिसमें दो पंक्तियाँ हैं : ‘फल के भी उर का कटु त्यागा/ मेरा आलोचक एक बीज’। आलोचक की हैसियत बीज की-सी ही है। इस पूरे सांग रूपक में अगर आप देखें-तो पेड़, फल, फूल तो हैं लेकिन आलोचक की जगह उस बीज की तरह है, जो सबसे नीचे रहता है, ज़मीन के अन्दर रहता है, पद हल में विराजता है। वे तो आकाश पूजन करने वाले हैं और बड़ी ऊँचाइयों को छूते हैं, लेकिन यह जो बीज है, रहता है फल के हृदय में ही। फल मीठा होता है, बीज कड़वा होता है। फल कोमल होता है, बीज कठोर होता है। याद करें-आम की गुठली। अब विडम्बना यह है कि आलोचक का जो बीज भाषण है, उसे कड़वा होना ज़रूरी है। यह उसकी प्रकृति है। अब तक के भाषणों में थ्योरी पर ही मुख्य बल है। ऐसा मालूम होता है जैसे भारत में भी हम चाहते हैं कि यह पूरा युग ‘एज ऑफ़ थिअरी’ के नाम से जाना जाये जैसे अमरीका में किसी समय ‘एज ऑफ़ क्रिटिसिज़्म’ हुआ था। ख़तरा यही है- ‘थ्योरी’ की भूख माँग की आकांक्षा ! पश्चिम के दो दशक ‘थ्योरीज’ के हैं। हर कोई जानता है कि इस बीच जितनी ‘थ्योरी’ आयी है, उसकी प्रयोगशाला फ्रांस है और उसका कारख़ाना अमरीका के विश्वविद्यालय हैं। दुनिया भर के जो नाम आते हैं-फूको, लाकाँ, देरिदा वगैरह यहीं से हैं। कुछ चीजें होती हैं जो पैदा कहीं होती हैं, लेकिन शोभा उनकी अन्यत्र होती है। जैसे फ्रांस में पैदा हुईं और अमरीकी विश्वविद्यालय में छायी हुई हैं।….

– इसी पुस्तक से

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Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2023

Pulisher

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