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Description
आलोचना के नये परिप्रेक्ष्य
नये विमर्शों ने साहित्य, समाज और संस्कृति तीनों को लेकर सदियों से स्थित मान्यताओं-अवधारणाओं को छिन्न-भिन्न कर दिया। सवाल उठे कि हाशिये का समाज साहित्य की आस्वादन-व्यवस्था में कहाँ है। चिंतन और सृजन दोनों धरातल पर दलित-स्त्री-आदिवासी चेतना के स्वर सुनाई पड़ने लगे, तो स्वभाविक था कि इनके मूल्य और मानक भी विचार का विषय बनते। चूँकि नये विमर्शों की रचनात्मक जमीन ही अनुभवाश्रित है, अतः जरूरी है कि इनके मूल्यांकन के मानदण्ड भी अलग होंगे। यह नहीं कहा जा सकता कि वे एक दिन में निर्मित्त हो जायेंगे, किन्तु यह तो तय है कि इनके स्वरूप के अनुरूप ही मानदण्ड तय करने होंगे। यह निर्माण-प्रक्रिया जारी है। यह पुस्तक इस प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं की पड़ताल करते हुए उन्हें प्रस्तुत करने को एक उल्लेखनीय पहल है। इससे नये विमर्शों की वैचारिकी के रचनात्मक बिन्दुओं को चर्चा और चिंतन के केन्द्र में लाने में मदद मिलेगी।
– रमणिका गुफा
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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