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आस्था का पथ
दो शब्द
अनंत की अनुभूति के कई मार्ग हैं। अब यह यात्री की क्षमता पर निर्भर करता है कि वह अपने लिए किस मार्ग को चुने। साधना की पहली सीढी है-उपयुक्त का चुनाव। इस दृष्टि से मार्गों में भेद हो जाता है, लेकिन इन सबमें एक तत्व अनिवार्य है ’आस्था’। यह किसी भी मार्ग की सफलता के लिए आवश्यक है। आस्था सम्मिश्रण है श्रद्धा और विश्वास का। साधक की लक्ष्य के प्रति श्रद्धा होनी चाहिए और विश्वास होना चाहिए उन साधनों के प्रति, जिन्हें वह अपना रहा है। इस प्रकार पूर्व के अनुभव, भविष्य के प्रति श्रद्धा और वर्तमान के प्रति विश्वास का समन्वय ऐसी आधार भूमि का निर्माण करते हैं, जिनसे सफलता बचकर निकल ही नहीं सकती।
श्रीरामचरित मानस में इसी आशय का एक श्लोक है-
भवानीशंकरौ वंदे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्तस्थमीश्वरम्।।
’श्रद्धा और विस्वासरूप भवानी और शंकर की मैं वंदना करता हूं, जिनके बिना अपने हृदय में विराजमान ईश्वर को सिद्धजन भी देख नहीं पाते हैं।’
कहने का तात्पर्य है कि आस्था ही वह तत्त्व है, जो हृदयस्थ ईश्वर को देखने की क्षमता देता है। इसीलिए यह प्रत्येक उस व्यक्ति के लिए आवश्यक है, जो ईश्वरत्व का आकलन करना चाहता है। इस दृष्टि से आस्था ही परमात्मा तक पहुंचने की एकमात्र राह है-अर्थात् परमसाधन है आस्था।
पूज्य स्वामी अवधेशानंद जी महाराज ने अपने प्रवचनों में आस्था को सुदृढ़ करने वाले सद्गुणों की चर्चा की है। इस पुस्तक में उन्हीं को आधार बनाकर सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। आशा है, यह पुस्तक जिज्ञासु-साधकों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी।
आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत है।
आपका
– गंगाप्रसाद शर्मा
Additional information
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Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher |
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