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Description
आत्म को धरती
प्रस्तुत पुस्तक एक यात्रा-वृत्त मात्र नहीं बल्कि एक गंभीर विचारक का गंभीर चिंतन है। जितना ही मनोरम उतना ही बुद्धि को सक्रिय करने वाला। पत्र शैली में लिखे गए ये संस्मरण अत्यंत सहज ढंग से देखे गए स्थानों, व्यक्तियों और संस्कृतियों को रूपायित करते हैं। ये कहीं भावुक नहीं होते, मोहाविष्ट नहीं होते बल्कि सजग आँखों से चीजों को देखते और तटस्थ अंदाज में उनका विश्लेषण करते हैं। इन संस्मरणों में भारत का इतिहास, भूगोल, उसकी आकृति, प्रकृति, संस्कृति और विकृति-सब कुछ मिल जाएगी। लेखक ने जहाँ एक ओर प्रकृति के मनोहारी दृश्यों का चित्रण किया है वहीं दूसरी ओर उनके पीछे की कुरूपताओं का भी। जहाँ प्राचीन वैभव का वहीं उनके अवशेषों का भी। कश्मीर से कन्याकुमारी और पुरी से द्वारका तक का वैविध्यपूर्ण परिवेश, जीवन और बहुरंगी संस्कृति इन संस्मरणों में साकार है।
प्रसिद्ध कवि, आलोचक और ‘दस्तावेज’ के संपादक डॉ० विश्वनाथप्रसाद तिवारी के इन संस्मरणों में एक संवेदनशील प्रकृति-प्रेमी पर्यटक और एक गंभीर संस्कृति-प्रेमी विचारक के दोनों रूप एक साथ दिखाई पड़ते हैं, साथ ही एक विशिष्ट सर्जनात्मक गद्यकार के भी। भारत के प्रति जिज्ञासा और प्रेम रखने वाले देशी- विदेशी पाठकों के लिए यह पुस्तक जरूरी और महत्त्वपूर्ण साबित होगी।
Additional information
Binding | Hardbound |
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Language | Hindi |
Publishing Year | 2011 |
Pulisher | |
Authors | |
ISBN | |
Pages |
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