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Description
अब तो बात फैल गई
हिन्दी के समकाल के सर्वाधिक चर्चित, पठित एवं विवादित संस्मरणकार कान्तिकुमार जैन के संस्मरणों की ही पुस्तक नहीं है अपितु वह पहिली बार संस्मरणों की सैद्धान्तिकी का भी निर्माण करती है। हिन्दी के संस्मरण साहित्य को नई ऊँचाई, गहराई और व्यापकता देने वाले कान्तिकुमार जैन ने प्रस्तुत पुस्तक में संस्मरण विधा के सर्वथा नये प्रयोग किये हैं। किसी को बिना देखे या मिले उसके परिवेश को केन्द्र बनाकर क्या संस्मरण लिखे जा सकते हैं ? कान्तिकुमार का उत्तर है—हाँ। नज़ीर अकबराबादी, सुभद्राकुमारी चौहान और जयशंकर प्रसाद के संस्मरण इसके प्रमाण हैं। लेखक ने डॉ० हरीसिंह गौर, भगीरथ मिश्र, राजेन्द्र यादव, परसाई, कमलेश्वर, मैत्रेयी पुष्पा जैसे व्यक्तियों पर संस्मरण लिखते हुए उनकी मनोसंरचना की पड़ताल तो की ही है, उनके साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश को भी खँगाला है। अपनी तुर्श, तीखी और पैनी टिप्पणियों के साथ। याद, विवाद और संवाद खण्डों में विभाजित यह पुस्तक हिन्दी साहित्य और भाषा के मुद्दों से भी दो चार होती है। इस पुस्तक के पन्नों पर आपको अटल बिहारी वाजपेयी, बिल क्लिंटन, हरिवंशराय बच्चन, अमिताभ बच्चन, विद्यानिवास मिश्र, अशोक वाजपेयी, शिवकुमार मिश्र, विष्णु खरे, रवीन्द्र कालिया, भारत भारद्वाज, कमला प्रसाद जैसे लोग बराबर चहलकदमी करते मिल जायेंगे। कमलेश्वर जैसों के साथ मैत्रेयी पुष्पा, ईसुरी, सानिया मिर्जा जैसे इस पुस्तक में व्यक्ति नहीं रह जाते, विभिन्न ग्रंथियों, प्रवृत्तियों और मानसिकताओं के प्रतीक बन जाते हैं। इस पुस्तक में आपको व्यक्तियों के भित्ति चित्र तो मिलेंगे ही, नाना छोटे-बड़े साहित्यकारों, कलाकारों, अध्यापकों, राजनेताओं, खिलाड़ियों और पत्रकारों के जीवंत नखचित्र भी मिलेंगे।
इस पुस्तक के आलेख हिन्दी की शीर्ष पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर जहाँ एक ओर विविध रुचियों वाले पाठकों को आकर्षित कर चुके हैं, वहीं दूसरी ओर समीक्षकों के बीच संस्मरणों में ‘क्या कहा जाये और किस रूप में कहा जाये’ जैसे गम्भीर विवादों को जन्म देने वाले भी सिद्ध हुए हैं। यह अच्छी बात है कि इस पुस्तक में, सदैव की भाँति, लेखक जहाँ अन्यों के गोपन को ‘ओपन’ करता है, वहीं स्वयं के बारे में भी कुछ छिपाता नहीं है।
अपने समय के मूल्यों की भीतरी परतों को प्रत्यक्ष करने वाली यह पुस्तक और कुछ नहीं तो केवल बतरस के लिए, केवल भाषा की उछालों के लिए भी पढ़ी जा सकती है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2007 |
Pulisher |
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