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Description
आचार्य रामानुज
“सुशील कुमार सिंह ने जब मुझे इस नाटक की एक प्रति भेंट की तब इसके नाम से ही मेरा आकर्षण बढ़ गया। आज के अनास्थावादी युग में भारतीय संस्कृति की खँडहर पड़ी हवेली में प्रवेश कर उसका अमूल्य वैभव श्रमपूर्वक बटोरने और सहेज कर रखने वाले नवयुवक निश्चय ही बधाई के पात्र हैं।
नाटक आधुनिक शैली में लिखा गया है। संवादों की उम्दा बानगियाँ भी देखीं। नाटककार को बहुत-बहुत असीसने को जी चाहता है।”
– अमृतलाल नागर
“नाटक पढ़ने पर उन आस्थाओं और सिद्धान्तों का रूप दिखा जिन पर भक्त सम्प्रदाय की परम्पराएँ स्थापित हैं। वैज्ञानिक युग में चमत्कारों पर कुछ लोगों का विश्वास नहीं रह गया लेकिन ये लोग उनसे अलग हैं। जनता जर्नादन तो विश्वासों पर ही स्थापित है। बौद्धिकता मानव विकास का सहायक अंग है किन्तु मानव की स्थापना तो भावना और विश्वास पर ही है… और इसीलिए मैं आचार्य रामानुज को एक सफल नाटक समझता हूँ। शिल्प के हिसाब से भी यह सफल नाटक है।
मैं नवयुवक नाटककार सुशील कुमार सिंह को बधाई देता हूँ ।”
– भगवतीचरण वर्मा
“वैष्णव सिद्धान्त के संस्थापक आचार्य रामानुज के जीवन पर गढ़े गये इस नाटक में सार्थक और सशक्त नाट्यात्मक अनुभूति है। संवादों में चारों ओर बिखरी काव्य आभा सहज ही हमें आन्दोलित कर देती हैं। नाटक की कथावस्तु में कल्पना का सुनहरा रंग है पर रामानुजाचार्य से सम्बन्धित वास्तविक तथ्यों की बिखरी सामग्री को भी रंगमंच की परिधि में कुशलतापूर्वक गूँथा गया है।”
– ज्ञानदेव अग्निहोत्री
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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