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Description
अच्छे विचारों का अकाल
अनुपम मिश्र कवि भी हो सकते थे, उपन्यासकार भी और आलोचक भी। उनको अपने सुविख्यात पिता कवि भवानीप्रसाद मिश्र से साहित्य के संस्कार प्राप्त तो हुए ही थे और इस बात का अनुमान उनके लिखे गद्य को देखकर सहज ही लगाया जा सकता है। हो सकता है गाहे-बगाहे उन्होंने कविताएँ भी लिखी हों। लेकिन इन सभी रास्तों के बजाय उन्होंने पिता के काव्य प्रेम के स्थान पर उनके गाँधी प्रेम को अपनाया। सम्भवतः उन्होंने उन सभी खतरों को भाँप लिया था, जो हमारी प्राकृतिक सम्पदा पर मँडरा रहे थे और जब प्रकृति ही—पेड़-पौधे, नदी, तालाब, पानी, हवा, गाँव, जंगल ही नहीं रहेंगे तो मनुष्य कितना बचा रहेगा।
जल है तो जीवन है। इसी कारण सभी आदिम सभ्यताएँ नदियों के किनारे पली-फूलीं। जिस तरह प्रकृति की उपेक्षा मानव कर रहा है। कुछ समय बाद जल की पर्याप्त उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती होगी तो पानी एक बड़े युद्ध का कारण बन सकता है। जब प्रकृति पर खतरे मँडराने लगें तो सभ्यता पर भी खतरे मँडराने लगते हैं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2016 |
Pulisher |
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