Adhbuni Rassi : Ek Parikatha

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Adhbuni Rassi : Ek Parikatha

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795.00 595.00

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Author: Sachchidanand Chaturvedi

Availability: 5 in stock

Pages: 271

Year: 2024

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126716852

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

अधबुनी रस्सी एक परिकथा

रस्सी अगर अधबुनी रह जाए तो वह रस्सी नहीं कहलाती। रस्सीपन न हो तो रस्सी कैसी ? बुनने वाले ने आखिर पूरी क्यों नहीं बुनी ? बुननेवाला मिले तभी तो पूछें। और वह नहीं मिलता। डमरुआ गाँव और उसमे रहने वालों की ज़िंदगी ऐसी ही एक अधबुनी रस्सी है। जीवंतता में कोई कमी नहीं है। लेकिन यह एक कड़ी सचाई है कि जिजीविषा अपने आपमें कोई गारंटी नहीं – न निर्माण की और न नाश के निराकरण की। फिर यह भी कि जहाँ जिजीविषा, वहाँ आस्था। भले ही अधबुनी ज़िंदगियाँ लेकिन ज़िंदगीपन भरपूर – जो आकर्षित भी करता है और अपने अधबुनेपन पर करुणा भी उपजाता है और सबसे खास बात यह है कि लेखक ने कथा बड़ी सहजता से कही है। पूरे भरोसे के साथ उसने पात्रों और उनके परिवेश का पाठकों से परिचय करवाया है और सहृदय पाठक पाता है कि परिचय एक अविस्मरणीय आत्मीयता में बदल गया है।

कहना होगा कि औपन्यासिकता कोई अधबुनी नहीं रह गई है। लेखक का यह पहला उपन्यास है लेकिन इसे निस्संकोच ‘मैला आँचल’ और ‘अलग अलग वैतरणी’ की परम्परा में रखा जा सकता है और यह कोई कम उपलब्धि की बात नहीं। डमरुआ गाँव और उसमें रहनेवालों को जानना जैसे स्वयं को और अपने परिवेश को नए सिरे से पहचानना है। जिस सहजता के साथ डमरुआ एकाएक बीसवीं शती के उत्तरार्ध का भारत बन जाता है, वह पाठक के लिए एक सुखद विस्मयकारी घटना है। कथा-रस और यथार्थ का ऐसा संयोग बहुत ही कम देखने को मिलता है और ‘अधबुनी रस्सी : एक परिकथा’ उपन्यास इसीलिए पाठक के अनुभव संसार को अतुलनीय समृद्धि देने में सक्षम बन सका है। कथ्य सहज, शिल्प सहज और फिर भी रस्सी के अधबुनी रह जाने की अत्यंत विशिष्ट कथा उपन्यास को बार-बार पढ़ने को प्रेरित करती है। कोई विस्मय की बात नहीं, अगर यह उपन्यास भविष्य में इने-गिने महत्त्वपूर्ण उपन्यासों में एक गिना जाए।

– वेणुगोपाल

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Binding

Hardbound

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Publishing Year

2024

Pulisher

Language

Hindi

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