Adhunik Vishwa Sahitya Aur Siddhant

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Adhunik Vishwa Sahitya Aur Siddhant

Adhunik Vishwa Sahitya Aur Siddhant

499.00 369.00

In stock

499.00 369.00

Author: Namvar Singh

Availability: 5 in stock

Pages: 471

Year: 2023

Binding: Paperback

ISBN: 9788119159147

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

आधुनिक विश्व साहित्य और सिद्धान्त

आधुनिक आलोचक का समकाल सिर्फ देशी या राष्ट्रीय परिदृश्य से ही परिभाषित नहीं होता। इसमें वैश्विक परिदृश्य भी शामिल होता है। सम्भवतः यही कारण है कि नामवर सिंह लगातार आधुनिक विश्व साहित्य और सिद्धान्तों के सम्पर्क में रहे। उनसे संवाद करते रहे। इस पुस्तक में ऐसे कुछ निबन्ध शामिल हैं, जिनसे इस संवाद की बुनियादी प्रवृत्तियों को समझा जा सकता है।

इनमें सबसे पहले तो यही बात ध्यान खींचती है कि नामवर जी ने ‘आधुनिक विश्व’ का अर्थ ‘यूरोप’ या ‘अमरीका’ तक सीमित नहीं किया है। ‘विश्व’ और ‘विश्व साहित्य’ को परिभाषित करते हुए उन्होंने जगह-जगह यूरोपीय राष्ट्रों की अमानवीय क्रूरताओं को संकेतित करनेवाले उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद जैसे पदों का प्रयोग किया है औरएशियाई, अफ्रीकी और लैटिन अमरीकी साहित्य के ब्योरे दिये हैं। जगह-जगह प्रमुख प्रवृत्तियों, लेखकों और रचनाओं का विशेष इन्दराज है और उन पर आत्मीय आलोचनात्मक टिप्पणियाँ हैं। प्रमुख लेखकों पर टिप्पणियाँ करते समय उन्होंने विश्व में उनकी लोकप्रियता या प्रभाव की तुलना में स्थानीय और राष्ट्रीय समाजों में उनके हस्तक्षेप को ज्यादा महत्त्व दिया गया है।

यह भी दिखाई देता है कि अनेक लोकप्रिय और मान्य लेखकों, आलोचकों और सिद्धान्तकारों की मान्यता और लोकप्रियता से वे अनाक्रान्त रहते हैं। भारतीय परम्परा और आधुनिक भारतीय लेखन की ठोस जमीन पर जमे उनके पाँव उन्हें ‘बाहरी’ को अपनाने और उसका मुग्धताहीन मूल्यांकन करने का विवेक और साहस देते हैं।

ये निबन्ध विश्व साहित्य और सिद्धान्तों से एक भारतीय विचारक-आलोचक का गहरा संवाद है। यह एक ऐसा भारत है जहाँ विश्व एक सच्चे साथी के रूप में मौजूद रहता है। यह भारत उस दुनिया का हिस्सा है, जहाँ कोई भी मुल्क, कोई भी समाज विश्व से अलग हो कर नहीं रह सकता। एक साथी विश्व है तो दूसरी ओर शोषक विश्व। एक ओर अपनेपन से भरा विश्व है तो दूसरी ओर पराया बनाये रखनेवाला विश्व। एक ओर जनवादी विश्व है तो दूसरी ओर जनशत्रु विश्व। हिन्दी में पगा-डूबा एक आलोचक जब ऐसे विश्व में उतरता है तो वह एकतान नहीं हो सकता। उसे प्रतिपल एक जटिल, बहुस्तरीय, बहुआयामी विश्व-यथार्थ से सामना करना पड़ता है। इन निबन्धों में हम ऐसे ही नामवर को देखते हैं।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2023

Pulisher

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