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Description
अग्निस्नान एवं अन्य उपन्यास
राजकमल चौधरी की लेखनी जीवन के सांगोपांग चित्रण, जीवन जीने वालों के समाज और प्रकृति से सम्बन्धित संदर्भों के साथ-साथ चलती है। नारी समलैंगिकता, यौन-विकृति, फिल्म कल्चर, महानगरों के निम्नवर्गीय समुदाय आदि विषयों को राजकमल ने अपने उपन्यास लेखन का मूल केन्द्र बनाया। हिन्दी में लिखे इनके लगभग सभी उपन्यास इन्हीं विषयों पर आधारित हैं। निम्न मध्यवर्ग से उच्च मध्यवर्ग के बीच के इनके सारे पात्र अपनी आवश्यकताओं की अभिलाषा एवं उनकी पूर्ति हेतु घनघोर समस्याओं, विवशताओं से आक्रान्त दिखते हैं। कतरा भर सुख-सुविधा के लिए, अपनी अस्मिता बचा लेने के लिए जहाँ व्यक्ति को घोर संघर्ष करना पड़े वहीं से राजकमल का हर उपन्यास शुरू होता है।
इस संकलन में राजकमल चौधरी के पाँच उपन्यास संग्रहीत किए गए हैं, अग्निस्नान, शहर था शहर नहीं था, देहगाथा, बीस रानियों के बाइस्कोप और एक अनार : एक बीमार। सभी उपन्यास बीती सदी के पाँचवें दशक से आई शिल्पगत और कथ्यगत नवीनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनके उपन्यासों में शिल्प एवं कथ्य प्रयोग अनूठे और एक सीमा तक चौंकानेवाले हैं। राजकमल की रचनाओं पर अक्सर अश्लीलता का आरोप लगता रहा है लेकिन जब स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की चर्चा चिकित्साशास्त्र के पन्नों पर अश्लील नहीं है, व्यक्ति के दैनिक क्रियाकलाप में अश्लील नहीं है, तब वह साहित्य में आकर कैसे अश्लील हो जाएगी ? यदि मुट्ठी-भर लोग पूरे देश के आम नागरिक की सुख-सुविधा अपने फ्लैट में कैद कर लेते हैं, अभावग्रस्त और विवश नारियों को थोड़े से अर्थ के बल पर अपने बिस्तर पर खिलौना बनाकर इसे वैध और उचित ठहराते हैं और यह आचरण अश्लील नहीं है तो फिर इसकी चर्चा कैसे अश्लील है ? जनजीवन में घटती किसी भी घटना के चित्रण में राजकमल ने अश्लीलता खोजने की इच्छा नहीं की, बल्कि अश्लीलता खोजने वालों को यहाँ तक हिदायत दे डाली कि साहित्य में अश्लीलता आरोपित करने वाले पुलिस मनोवृत्ति के लोग उनकी किताब न पढ़ें।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2001 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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