Ajneya Jail Ke Dinon Ki Kahaniyan
Ajneya Jail Ke Dinon Ki Kahaniyan
₹400.00 ₹320.00
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Author: Krishnadatta Paliwal
Pages: 244
Year: 2013
Binding: Hardbound
ISBN: 9789350008423
Language: Hindi
Publisher: Vani Prakashan
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Description
अज्ञेय जेल के दिनों की कहानियाँ
अज्ञेय उन विद्रोही रचनाकारों में हैं जो अपनी रचनाओं के बारे में जमकर सोचते हैं। उनका हमेशा मत रहा है कि सोचने से आगे के लिए पटिया साफ हो जाती है। रचना का काम अभिव्यक्ति नहीं, सम्प्रेषण है। इस दृष्टि से अज्ञेय के कहानी-लेखन को रचना-कर्म के सन्दर्भ में ही देखना चाहिए।
अज्ञेय की इन जेल जीवन के समय में लिखी गयी कहानियों में ‘एक स्पष्ट आदर्शोन्मुख स्वर’ है। वे एक क्रान्तिकारी द्वारा लिखी गयी क्रान्ति-समर्थक कहानियाँ हैं, आज का क्रान्तिकारी ‘आदर्शवादी होने’ का उपहास कर सकता है पर उस समय स्वाधीनता आन्दोलन के सत्याग्रह युग में आदर्शवादी होना गौरव की बात थी। विशेष बात यह भी है कि उन क्रान्तिकारियों के आदर्शवादी लेखन में एक भोलापन था और एक रोमानी उठान थी। आज उस रोमानी उठान को ठीक से न समझने वाले कुछ वाम खेमे के आलोचक उन कहानियों की निन्दा करते हैं, पतन का लक्षण मानते हैं और अज्ञेय को यथार्थ विरोधी प्रतिगामी कहते हैं।
अज्ञेय ने कहा है, “मैं क्रान्तिकारी दल का सदस्य था और जेल में था और युवक तो था ही। कॉलेज से ही तो सीधा जेल में आ गया था। पहले खेप की कहानियाँ क्रान्तिकारी जीवन की हैं-क्रान्ति समर्थन की हैं और क्रान्तिकारियों की मनोरचना औरे उनकी कर्म-प्रेरणाओं के बारे में उभरती शंकाओं की हैं। बन्दी-जीवन ने कैसे कुछ को तपाया, निखारा तो कुछ को तोड़ा भी। इसका बढ़ता हुआ अनुभव उस प्रारम्भिक आदर्शवादी जोश को अनुभव का ठण्डापन और सन्तुलन न देता यह असम्भव था-और सन्तुलन वांछित भी क्यों नहीं था ? बन्दी जीवन जहाँ संचय का काल था वहाँ कारागार मेरा “दूसरा विश्वविद्यालय’ भी था, पढ़ने की काफी सुविधाएँ थीं और उनका मैंने पूरा लाभ भी उठाया। पहले साहित्य और विज्ञान का विद्यार्थी रहा था तो यहाँ उन विधाओं का भी परिचय प्राप्त किया जो क्रान्तिकारी के लिए अधिक उपयोगी होतीं-इतिहास, अर्थशास्त्र, राजनीति, मनोविज्ञान, मनोविश्लेषण और दर्शन का साहित्य भी इन दिनों पढ़ा। चार-चार वर्ष जेल में बिताकर और वर्षभर नजरबन्दी में बिताकर जब मुक्त हुआ तब यह नहीं कि क्रान्ति का उत्साह ठण्डा पड़ चुका था, पर आतंकवाद और गुप्त-आन्दोलन अवश्य पीछे छूट गये थे और हिंसा की उपयोगिता पर अनेक प्रश्नचिद्न लग चुके थे।”
जेल जीवन की इन कहानियों को एक जगह संगृहीत करने के पीछे केवल मंशा यह है कि प्रबुद्ध पाठक इनकी एक साथ अन्तर्यात्रा कर सके। साथ ही इस अन्तर्यात्रा से अज्ञेय की आरम्भिक मनोभूमिका को सही सन्दर्भ में समझा भी जा सके।
अनुक्रम
- अज्ञेय : जेल जीवन की मनोभूमिका
- अकलंक
- मिलन
- द्रोही
- हारिति
- अमरवल्लरी
- छाया
- विवेक से बढ़ कर
- विपथगा
- एक घंटे में
- गृहत्याग
- अभिशापित
- पगोदा वृक्ष
- एकाकी तारा
- क्षमा
- अंगोरा के पथ पर
- कड़ियाँ
- कैसांड्रा का अभिशाप
- कोठरी की बात
- परिश्षिष्ट-1 : रचनाकार
- परिशिष्ट-2 : कृतित्व
- परिशिष्ट-3 : सहायक सामग्री
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2013 |
Pulisher |
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