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Description
अक्लांत कौरव
यह उपन्यास सामयिक वाम-राजनीति के परस्पर विरोधी पक्षों के संघर्ष का प्रामाणिक दस्तावेज है और इतनी परिपक्व राजनीति सूझबूझ और प्रखर सामाजिक चेतना से ओतप्रोत कि वाम-राजनीति की विचारधाराओं के घटाटोप आकाश के स्पष्ट दिशा-संकेत देता है। संथालों के जागुला गाँव में द्वैपायन सरकार का आगमन एक ऐसी थीसिस लिखने के लिए होता है, जिसका उद्देश्य संथालों को डरपोक गैर-लड़ाकू सस्ते में खरीदी जानेवाली आदिवासी की एकता को छिन्न-भिन्न किया जा सके। वाम-राजनीति के दक्षिणी छोर के स्थायी निवासी द्वैपायन सरकार किन्ही अदृश्य शक्तियों से चलित होकर अक्सर इसी तरह के विषयों के अनुसंधानकर्ता के रूप में प्रख्यात हैं; किन्तु अब उन्हे पहचान लिया गया है।
युवा इन्द्र प्रामाणिक कलकत्ता के यूनियन फ्रंट पर बड़े नेताओं के बदलते तेवर देखकर ईमानदारी से गाँव में काम करने के लिए आया है, किन्तु नवीन बाबू और मोती बाबू जैसे सजे-धजे काडरों का उसे नक्सल सिद्ध करने में कौन-सास मकसद है? ईमानदार काडर और बेईमान काडर तथा छुटभैये कॉमरेडों के इस संघर्ष में संथालों को अपनी विश्वसनीय पक्ष ढूँढ़ने में कोई कठिनाई नहीं होती।
यह उपन्यास पश्चिमी बंगाल सरकार द्वारा खेतिहर भूमि के बँटवारे के लिए चलाए गए ‘ऑपरेशन बर्गा’ के लाभो से वंचित आदिवासी जातियों की न्याय की लड़ाई का प्रामाणिक दस्तावेज है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
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