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Description
आलोचना की छवियाँ
आलोचना की छवियाँ अपने नाम के अनुरूप हिन्दी आलोचना के विविध स्तरों को सामने लाती है और रचनाओं-रचनाकारों की समकालीन प्रासंगिकता तथा उनकी भविष्यगामी उपादेयता पर गम्भीर बहस-मुबाहिसा करती है। अपने इस आयोजन में यह पुस्तक कई पीढ़ियों के लेखकों और कृतियों को एक जगह समेटे हुए है जिसमें बिल्कुल नयी पीढ़ी के प्रतिनिधि रचनाकार भी दिखाई देंगे। कविता हो या उपन्यास, कहानी हो या नाटक प्रस्तुत पुस्तक नये अन्दाज़ और समकालीन व्यावहारिक सन्दर्भो के माध्यम से उनसे जूझती है और आलोचना के लिए एक नई रचनात्मक दृष्टि की प्रस्तावना करती है। दशकों से चले आ रहे रूढ़ प्रतिमान यहाँ दिखाई न दें तो कोई आश्चर्य नहीं। और शायद इसीलिए सम्भव भी हो पाया है कि युवा आलोचक ने शमशेर बहादुर सिंह, रघुवीर सहाय, धूमिल और अशोक वाजपेयी जैसे कवियों पर जो लिखा, जो जाँचा वह आलोचना के आलोचना प्रचलित चौखटे में नहीं मिलेगा। पुस्तक में यह भी दिखाई देगा कि जिन विषयों पर बात करने से प्रायः कतराया जाता रहा है, वे विषय यहाँ मौजूद मिलेंगे और कुछ भूलों पर समाधान भी देते नज़र आयेंगे। मसलन-‘तारसप्तक’ का हिन्दी कविता में क्या योगदान है और इस परम्परा से वह कितनी क्षतिग्रस्त भी हुई। जैनेन्द्र की प्रासंगिकता क्यों है; नाटक लिखे नहीं जाते कि हिन्दी के निर्देशक उदासीन हैं, समकालीन कविता, समकालीन कहानी की स्थितियाँ क्या हैं, युवालेखन की वर्तमान चुनौतियाँ क्या हैं; जैसे विषय असुविधाजनक हैं जिनसे कृति में पर्याप्त बहस दिखाई दे सकती है और इससे हिन्दी आलोचना की समकालीन स्थिति पर भी रौशनी पड़ती दीख सकती है।
इस मायने में भी संभवतः यह पहली आलोचना पुस्तक है जिसमें एक युवा आलोचक द्वारा अपने समकालीन लेखकों से भी टकराने का उद्यम दिखाई देगा। एक स्तर पर यह पुस्तक अपने समकालीनों से संवाद का प्रयत्न भी है। पुस्तक ठस और अकादमिक आलोचना से अलग इस मायने में भी उपादेय और प्रासंगिक है कि इसमें प्रत्येक स्थापना पर व्यावहारिक तर्क देखे जा सकते हैं। कहना चाहिये कि यह पुस्तक निश्चय ही हिन्दी आलोचना का अगला चरण है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2013 |
Pulisher |
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