Amanat

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Author: Gurudutt

Availability: 4 in stock

Pages: 292

Year: 2015

Binding: Paperback

ISBN: 8188388726

Language: Hindi

Publisher: Hindi Sahitya Sadan

Description

अमानत

प्रथम परिच्छेद
1.1
बम्बई मातुंगा में, एक मकान की दूसरी मंजिल पर बैठा एक व्यक्ति एक स्त्री से पूछताछ कर रहा था, ‘‘तो तुम शकुन्तला हो ?’’
‘‘तो आपको विश्वास नहीं आ रहा ?’’

‘‘यदि विश्वास आ जाता तो विस्मयजनक होता। जिस शकुन्तला की बात तुम कह रही हो, वह मेरे मस्तिष्क से सर्वथा निकल चुकी है। उसका रूप-रंग भी अब स्मरण नहीं रहा। हां, उस शकुन्तला के स्वर्गीय पिता का नाम-धाम, काम और रूप राशि स्मरण है।

‘‘कुछ अन्य अपनी याददाश्त बताओगी तो कदाचित् याद आ जाये और प्रमाणित हो सके कि तुम स्वर्गीय सेठ रामगोपाल महेश्वरी की सुपुत्री हो।’’

‘‘वह प्रमाण भी मैं साथ लायी हूं परन्तु वे प्रमाण आपको दिखाऊं अथवा किसी न्यायालय में उपस्थित करूं, यह विचारणीय है। एक बात है। मैं न्यायालय में जाने से पूर्व घर पर ही समझ-समझा कर बात करना चाहती हूं।’’

‘‘यही तो मैं कह रहा हूं। साथ ही यह भी तो पता चलना चाहिए कि स्वर्गीय सेठ रामगोपाल जी की लड़की पिछले पच्चीस वर्ष तक कहां रही है, क्या करती रही है और अब वहां से यहां किस अर्थ आयी है ?’’

‘‘देखो काका ! आप पिताजी के विश्वस्त कारिन्दे थे और वह आज से पच्चीस वर्ष पूर्व, जब इंग्लैण्ड जाने लगे थे, तो आपको कुछ अमानत के रूप में दे गये थे। उस अमानत के विषय में ही कुछ बातचीत करने और उसे अधिकारी को वापिस दिलवाने आयी हूं।

‘‘पिताजी के विषय में पहले तो यह घोषणा हुई थी कि उनका देहांत इंग्लैण्ड से दूर-पूर्व की ओर जाते हुए एक हवाई दुर्घटना में हो गया है।

‘‘इंग्लैण्ड से जाने से पूर्व उन्होंने मेरा विवाह मानचेस्टर के एक इंजीनियर मिस्टर डेविड ऐन्थनी से कर दिया था।

‘‘हमने बहुत यत्न किया था कि पिताजी के कुछ कागजात जो वह अपने साथ ले जा रहे थे, मिल जायें। वह मिले नहीं और मेरे पति मिस्टर ऐन्थनी को किसी प्रकार की आर्थिक कमी थी नहीं। इस कारण हमने सेठ जी के विषय में कुछ जानने की आवश्यकता अनुभव नहीं की।

‘‘परन्तु आपका सुपुत्र मूलचन्द कहीं इंग्लैण्ड में मिल गया था। उससे एक सम्बन्ध बन गया जो यहां खेंच लाया है और मैं मूलचन्द से यह नवीन सम्बन्ध पालन कराने के लिये आयी हूं।’’

‘‘हां, मूलचन्द इंग्लैण्ड में था। उरने वहां से लौटे एक सप्ताह हो चुका है। यदि तुम उससे मिलना चाहती हो तो अपने ठहरने का स्थान बता दो, मैं उसे कह दूंगा। यदि वह तुमसे मिलना चाहेगा तो मिल लेगा।’’

‘‘यह ठीक है। मैं समझती हूं कि उसके द्वारा बातचीत हो तो ठीक है।

‘‘देखो काका ! मैं ‘ताज’ में ठहरी हूं। वहां रूम नम्बर एक सौ पच्चीस है और मैं मूलचन्द की प्रतीक्षा आज सांयकाल चाय पर करूंगी।’’

‘‘यदि आपकी इच्छा हो तो आप उसे एक करोड़पति बन बम्बई की दस कारोबारों के मालिक बनने की कहानी बता कर भेजियेगा और फिर उससे जो कुछ बताना आप भूल जायेंगे, मैं बता दूंगी।

‘‘अब मैं जाती हूं। मैं भारत में दो महीने के ‘टूअर’ का कार्यक्रम बना कर आयी हूं। मैं चाहूंगी कि इस काल से अधिक मुझे यहां ठहरना न पड़े।’’

‘‘शकुन्तला देवी ! चाय आ रही है, आप तनिक ठहरिये। बस आती ही होगी।’’
‘‘नहीं काका ! चाय तो अब आपके मुझे पहिचान लेने के उपरान्त ही लूंगी।’’

इतना कह वह उठी और चल दी। रामगुलाम लिफ्ट तक छोड़ने आया। वह विचार कर रहा था कि वह चतुर स्त्री कहीं ऊपर की छत को न चल दे और वहां मूलचन्द से मिलने का यत्न न करने लगे।

परन्तु शकुन्तला लिफ्ट से नीचे ही गयी। वह ऊपर की मंजिल पर नहीं गयी। लिफ्ट को नीचे जाते देख रामगुलाम अपने कार्यालय में लौट आया।
मकान की पहली छत पर उसका कार्यालय था और दूसरी छत पर उसका घर था।

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Paperback

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Language

Hindi

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Publishing Year

2015

Pulisher

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