Amar Desva

-16%

Amar Desva

Amar Desva

250.00 210.00

In stock

250.00 210.00

Author: Praveen Kumar

Availability: 5 in stock

Pages: 232

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9789391950231

Language: Hindi

Publisher: Radhakrishna Prakashan

Description

अमर देसवा

कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीतते-न-बीतते उस पर केन्द्रित एक संवेदनशील, संयत और सार्थक औपन्यासिक कृति का रचा जाना एक आश्चर्य ही कहा जाएगा। कहानियों-कविताओं की बात अलग है, पर क्या उपन्यास जैसी विधा के लिए इतनी अल्प पक्वनावधि/जेस्टेशन पीरियड काफ़ी है? और क्या इतनी जल्द पककर तैयार होनेवाले उपन्यास से उस गहराई की उम्मीद की जा सकती है जो ऐसी मानवीय त्रासदियों को समेटनेवाले उपन्यासों में मिलती है? इनका उत्तर पाने के लिए आपको अमर देसवा पढ़नी चाहिए जिसने अपने को न सिर्फ़ सूचनापरक, पत्रकारीय और कथा-कम-रिपोर्ट-ज़्यादा होने से बचाया है, बल्कि दूसरी लहर को केन्द्र में रखते हुए अनेक ऐसे प्रश्नों की गहरी छान-बीन की है जो नागरिकता, राज्यतंत्र, भ्रष्ट शासन-प्रशासन, राजनीतिक निहितार्थों वाली क्रूर धार्मिकता और विकराल संकटों के बीच बदलते मनुष्य के रूपों से ताल्लुक़ रखते हैं। इस छान-बीन के लिए प्रवीण संवादों और वाचकीय कथनों का सहारा लेने से भरसक परहेज करते हैं और पात्रों तथा परिस्थितियों के घात-प्रतिघात पर ज़्यादा भरोसा करते हैं। इसीलिए उनका आख्यान अगर मानवता के विरुद्ध अपराध घोषित किए जाने लायक़ सरकारी संवेदनहीनता और मौत के कारोबार में अपना लाभ देखते बाजार-तंत्र के प्रति हमें क्षुब्ध करता है, तो निरुपाय होकर भी जीवन के पक्ष में अपनी लड़ाई जारी रखनेवाले और शिकार होकर भी अपनी मनुष्यता न खोनेवाले लोगों के प्रति गहरे अपनत्व से भर देता है। संयत और परिपक्व कथाभाषा में लिखा गया अमर देसवा अपने जापानी पात्र ताकियो हाशिगावा के शब्दों में यह कहता जान पड़ता है, ‘कुस अस्ली हे… तबी कुस नकली हे। अस्ली क्या हे… खोज्ना हे।’ असली की खोज कितनी करुण है और करुणा की खोज कितनी असली, इसे देखना हो तो यह उपन्यास आपके काम का है।

– संजीव कुमार

Additional information

Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

Reviews

There are no reviews yet.


Be the first to review “Amar Desva”

You've just added this product to the cart: