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अमीरी रेखा
न्याय और अन्याय, अभाव और रईसी, इच्छा और यथार्थ, पुरातन और नई सभ्यता जैसे अनेक विलोम प्रत्ययों के बीच वैचारिक आवागमन को ये कविताएँ अप्रत्याशित अनूठेपन एवं द्वंद्वात्मकता के साथ संभव बनाते हुए नए प्रस्ताव प्रस्तुत करती हैं। यहाँ भाषा, विचार, नैतिकता और स्वप्नशीलता के साथ कलाकर्म की वही अप्रतिम सर्जनात्मकता दृष्टव्य है जिसे कुमार अंबुज की कविता ने लगातार अर्जित किया है और अंबुज हर बार उसे नई ऊँचाइयों, अभिनव जगहों तक ले गए हैं। ये कविताएँ सक्रिय और सकर्मक प्रतिरोध की रचनात्मक कार्रवाई हैं। इनमें जीवन के संगीत, उत्तराधिकार, वैश्विकता, राजनीति, बाजार, मनुष्यता, प्रेम और अपमान की, हमारे समय और हमारी भाषा की पुनर्परिभाषाएँ हैं, उनकी आधुनिक पहचान है।
साहसिक आत्मावलोकन और प्रवंचनाएँ भी हैं। इन कविताओं से अपने भीतर के टूटे-पूटे मनुष्य की मरम्मत की जा सकती है। इन्हें इनके खुरदुरेपन के लिए प्यार किया जा सकता है और इस बात के लिए भी कि इनके भीतर कितना कुछ है – शांत, चपल और भविष्य से लबालब भरा हुआ। संवेदित, व्यग्र अभिव्यक्ति, अचूक दृष्टि और पक्षधरता से पुष्ट कविता कुमार अंबुज की अपनी उपलब्धि है, जिसे यहाँ समूची हिन्दी कविता के संदर्भ में कुछ अधिक शक्ति के साथ औचक, विस्मयकारी, दुर्लभ, हार्दिक और नव्यतर भंगिमाओं के साथ देखा जा सकता है। किंचित लंबे अंतराल और प्रतीक्षा के बाद प्रकाशित यह संग्रह, निश्चय ही नई बहसों, रुझानों, प्रस्थानों और चुनौतियों का कारण बनेगा।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
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