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Description
अमृत संचय
आदिवासी जीवन की प्रामाणिक जानकार के नाते ख्यात लेखिका महाश्वेता देवी ने इतिहास को भी अपने लेखन का विषय बनाया है। पहले उपन्यास झाँसी की रानी, जली थी अग्निशिखा से लेकर प्रस्तुत उपन्यास अमृत संचय तक इस बात के गवाह हैं। यह उपन्यास सन् 1857 से थोड़ा पहले शुरू होता है जब सांगठनिक दृष्टि से देश कमजशेर था। सभी अपने-आपमें मगन, अलग-अलग समूहों, ख़ेमों और राज्यों में विभक्त। 1857 के विद्रोह में बंगाल ने किसी भी प्रकार की हिस्सेदारी नहीं निभाई थी। उधर संथाल में अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध बगशवत, नील-कर को लेकर असंतोष और अपेक्षित वेतन न मिलने के कारण सेना भी असंतुष्ट थी।
उपन्यास इसी संधिस्थल से आरंभ होता है और तैंतीस वर्षों बाद उस बिंदु पर ख़त्म होता है, जहाँ भारतीय जनमानस के चेहरे और विन्यास में बदलाव नजश्र आने लगा था। गहन खोज और अध्ययन, परिश्रम का प्रतिफल यह उपन्यास तत्कालीन समय की राजनीति, इतिहास, आम जन के स्वभाव-चरित्र, रंग-ढंग, रिवाज-संस्कार को प्रामाणिक तौर पर हमारे सामने लाता है। हालाँकि देशी-विदेशी क़रीब सौ चरित्रों को समेटना मुश्किल काम है, पर महाश्वेता देवी ने अपनी विलक्षण बुद्धि और शैली के बूते इसे संभव कर दिखाया है। लेखिका की पहचान रही उन तमाम ख्षूबियों को समेटे यह बंगला का प्रमुख उपन्यास माना जाता है जिसमें विपरीत स्थितियों में भी जीवन के प्रति ललक है और संघर्ष की आतुरता शेष है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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