Anand Ki Khoj

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Anand Ki Khoj

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80.00 79.00

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Author: Swami Avdheshanand Giri

Availability: 5 in stock

Pages: 152

Year: 2015

Binding: Paperback

ISBN: 9788131015223

Language: Hindi

Publisher: Manoj Publications

Description

आनन्द की खोज

दो शब्द

इस संसार में कौन ऐसा है, जिसे सुख की चाह न हो। कहते हैं कि गंदी नाली के एक कीड़े को, जो सड़क पार करते समय आते हुए वाहन की आवाज से तेज भागने लगा था, जब किसी ने पूछा ‘‘तुम अपने इस गंदे शरीर को क्यों बचाना चाहते हो ?‘ तो उसने उत्तर दिया ‘‘बहुत खुश हूं मैं इसमें। तुमसे ज्यादा सुख भोग रहा हूं।‘‘

सुख की यह संतुष्टि ही जीव को भ्रमित करती है। बार-बार संतुष्ट होना और फिर असंतुष्टि में घिरना एक ऐसे सतत् प्रवाह की तरह जीवन से जुड़ जाते हैं कि व्यक्ति को दुख में भी सुख का आभास होने लगता है। सुख में ही छिपकर बैठा होता है दुख। एक सिक्के के दो पहलू हैं ये। यह मोह या मूर्च्छा की स्थिति ही मनुष्य को आनंद से दूर ले जाती है।

‘बचपन खेल में खोया, जवानी नींद भर सोया, बुढापा देखकर रोया, यही किस्सा पुराना है।’ कड़वा सत्य है यह। और पशु-पक्षियों के साथ नहीं, यह केवल मनुष्य से जुड़ा हुआ है। मनुष्य से अन्य योनियां तो भोग भोगती हैं बस।

शास्त्रों का कथन है कि नासमझ लोग ही सुख की कामना करते हैं। बुद्धिमान जानता है कि दुख की प्रतीति मात्र है सुख। इसीलिए उन्होंने जीवन के अंतिम लक्ष्य का निर्धारण आनंद के रूप में किया। आनंद अर्थात् अक्षय सुख, जो शाश्वत तत्व से जुड़ने के परिणाम स्वरूप ही प्राप्त हो सकता है। परमात्मा का स्वरूप है आनंद, इसीलिए वह जीविन में तभी उतरता है जब स्वयं की आत्मा के रूप में अनुभूति हो। गीता में भगवान ने इसे ‘अक्षय सुख‘ कहा है।

आचार्य म.मं. पूज्य स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज के प्रवचनों पर आधारित इस पुस्तक में उस मार्ग की बात की गई है, जिसके द्वारा आनंद की महक जीवन को अपनी अलौकिक सुगंधि से भर देती है। तब दुख और अशांति पास नहीं फटकती। रोम-रोम में प्रसन्नता हिलोरें मारने लगती है तब।

आपके जीवन में भी ऐसा आनंद प्रकट हो, यही कामना है।

भवदीय

– गंगा प्रसाद शर्मा

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2015

Pulisher

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