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Description
अँधेरे बन्द कमरे
वर्तमान भारतीय समाज का अभिजातवर्गीय नागर मन दो हिस्सों में विभाजित है-एक में है पश्चिमी आधुनिकतावाद और दूसरे में वंशानुगत संस्कारवाद। इससे इस वर्ग के भीतर जो द्वंद्व पैदा होता है, उससे पूर्वता के बीच रिक्तता, स्वच्छंदता के बीच अवरोध और प्रकाश के बीच अंधकार आ खड़ा होता है। परिणामतः व्यक्ति ऊबने लगता है, भीतर-ही-भीतर क्रोध, ईर्ष्या और संदेह जकड़ लेते हैं उसे, जैसे वह अपने ही लिए अजनबी हो। उठता है वह, और तब इसे हम हरबंस की शक्ल में पहचानते हैं। हरबंस, इस उपन्यास का केन्द्रीय पात्र है जो दाम्पत्य संबंधों की तलाश में भटक रहा है।
हरबंस और नीलिमा के माध्यम से पारस्परिक ईमानदारी, भावनात्मक लगाव और मानसिक समदृष्टि से रिक्त दांपत्य जीवन का यहाँ प्रभावशाली चित्रण हुआ है। अपनी पहचान के लिए पहचानहीन होते जा रहे भारतीय अभिजातवर्ग की भौतिक, बौद्धिक और सांस्कृतिक महत्त्वाकांक्षाओं के अँधेरे बंद, कमरों को खोलनेवाले यह उपन्यास हिंदी की गिनी-चुनी कथाकृतियों में से एक है।
Additional information
Weight | 0.8 kg |
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Dimensions | 21 × 14 × 4 cm |
Authors | |
Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2020 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
Reviews
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