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Description
अँधेरे का ताला
इस वक़्त हाज़िरी ली जा रही है।
रंजना श्रीवास्तव-येस मिस!
रंजना श्रीवास्तव-प्रेज़ेंट मैम!
रंजना श्रीवास्तव-येस मैडम!
क्लास में दस रंजना श्रीवास्तव हैं। पिता के नाम अलग हैं पर रोल
कॉल में पिता का नाम लेने की परम्परा नहीं है। ऐसा लगता है जैसे रिकॉर्ड की सुई एक जगह अटक गयी है। यही हाल कंचन देवियों और वन्दना गुप्ताओं का है। लड़कियाँ अगड़म-बगड़म जवाब दे रही हैं। प्रॉक्सी भी जम कर चल रही है। हाज़िरी पूरी होने तक दस-बीस लड़कियाँ सक्सेना बहनजी को घेर लेती हैं,
“हमारा नाम, मैडम हमारा नाम ?”
लम्बी छात्राएँ उचक-उचक कर रजिस्टर में झाँकती हैं,
“मिस, कल हम उपस्थित थे, आपने एब्सेन्ट कैसे लगाया ?”
सक्सेना बहनजी निरुपाय-सी “पी” लगा देती हैं।
कुछ देर “ए” को पी बनाया जाता है।
अब बहनजी अपनी पुस्तक खोलती हैं-‘काव्य-सुषमा।’
रंजना श्रीवास्तव चतुर्थ अभी तक खड़ी है।
“मैम, आपने मुझे ‘ए’ कैसे लिखा ? घर से तो मैं रोज़ आती हूँ।”
बिन्दु पांडे और माया तिवारी कहती हैं, “पर कॉलेज कहाँ पहुँचती
हो ?”
“भई, इस तरह रोलकॉल को ले कर रोज़ समय नष्ट न किया करो।
मैं अटेन्डेंस लेनी बिल्कुल बन्द कर दूँगी।” सक्सेना बहनजी कहती हैं।
“लेकिन मैम, आपने मुझे ‘ए’ कैसे लगाया ?”
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
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