Anuvad Aur Rachna Ka Uttar Jeevan

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Anuvad Aur Rachna Ka Uttar Jeevan

Anuvad Aur Rachna Ka Uttar Jeevan

395.00 315.00

In stock

395.00 315.00

Author: Raman Sinha

Availability: 5 in stock

Pages: 196

Year: 2014

Binding: Hardbound

ISBN: 9788170559030

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

अनुवाद और रचना का उत्तर जीवन

सभ्यता के उद्भव और विकास में मानव सम्प्रेषण का इतिहास छिपा है और सम्प्रेषण के मूल में अनुवाद या अनुवाद की धारणा है। संरचनावाद के पहले अनुवाद की सभी अवधारणाएँ भाषा की उस पारम्परिक सोच पर आधारित रही हैं जिसके अनुसार शब्द और अर्थ का संबंध आईने के बिंब की तरह सीधा तथा सुसंगत होता है। उत्तर-संरचनावादी दौर में जब यह प्रतिपादित हुआ कि अर्थ किसी एक संकेत में नहीं बल्कि संकेतकों की एक पूरी श्रृंखला में बिखरा होता है जहाँ वह उपस्थिति और अनुपस्थिति के बीच झिलमिलाता रहता है तब स्पष्टतः अनुवाद की एक नई अवधारणा की आवश्यकता महसूस हुई। पुस्तक के प्रथम खंड में अनुवाद की इन्हीं कुछ अवधारणाओं पर दृष्टिपात किया गया है। अनुवाद की एक व्यावहारिक सैद्धांतिकी की खोज करते हुए भर्तृहरि की ‘सार्वभौम ‘भाषा’ की धारणा तथा नोआम चॉमस्की की ‘गहन संरचना’ की अवधारणा की उपयोगिता पर भी विचार किया गया है। खड़ी बोली हिन्दी की प्रायः हर विधा की शुरुआत अनूदित या अनुवाद से संबंधित किसी ग्रंथ से हुई है बावजूद इसके अनुवाद को यहाँ शायद ही कभी गम्भीर विश्लेषण का विषय माना गया। साहित्य के इतिहास में भी अव्वल तो अनुवाद का जिक्र ही नहीं होता और अगर हो भी जाए तो अनिवार्यतः उसे एक गौण गतिविधि माना जाता है। तेल अवीव विश्वविद्यालय, इजरायल के अन्तर्गत एक दशक तक चलने वाले एक महत्वाकांक्षी परियोजना ‘हिब्रू में साहित्यिक अनुवाद का इतिहास’ के निष्कर्षो से यह स्थापति हुआ है कि अनुवाद की स्थिति अनिवार्यतः गौण नहीं होती बल्कि जिस भाषा में अनुवाद हो रहा है उस भाषा विशेष की उम्र, शक्ति एवं सुदृढ़ता पर निर्भर करता है। पुस्तक के दूसरे खंड में ठोस विश्लेषण से यह तथ्य सामने आया है कि खड़ी बोली हिंदी के उद्भव में अनुवाद की एक केंद्रीय भूमिका थी और हिंदी नवजागरण की पृष्ठभूमि में इसका उल्लेख न करना एक ऐतिहासिक भूल है।

अनुवाद विशेषकर काव्यानुवाद की असम्भाव्यता जगजाहिर है फिर भी देरिदा के शब्दों में कहें तो “अनुवाद उतना ही आवश्यक है जितना कि असंभव।” अनुवाद की आवश्यकता और असम्भाव्यता के साथ-साथ इससे सम्बद्ध भाषिक एवं सांस्कृतिक अनन्यता के प्रश्न से सीधे साक्षात्कार के लिए पुस्तक के तीसरे खंड में मूल के साथ कुछ कविताओं के अनुवाद भी प्रस्तुत किए गए हैं।

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Authors

ISBN

Binding

Hardbound

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2014

Pulisher

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