Arthshastra : Marks Se Aage
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अर्थशास्त्र : मार्क्स के आगे
सन् १९४२-४३ में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध खुले-विद्रोह के समय जब समाजवादी-जन या तो जैलों में थे या उनको खदेड़ा जा रहा था, तब विदेशी महाप्रभुओं के साथ मिल कर कम्युनिस्ट अपना ‘जन-युद्ध’ लड़ रहे थे, मार्क्सवादी सिद्धान्त के अपने विशाल व्यावहारिक-अन्तविरोधों ने मुझे उद्विग्न कर दिया। अब तक की धारणाओं के सत्य की खोज करने और उसके असत्य को नष्ट करने की मेरी इच्छा जागी। चार योजना-वद्ध पहलुओं पर मैंने नये सिरे से विचार करना शुरू किया। अर्थशास्त्र, राजनीति, इतिहास और दर्शन-में अर्थशास्त्र अभी केवल आधा ही हुआ था कि पुलिस ने मुझे पकड़ लिया।
तब से खोज और अभिव्यक्ति के इस तरीके में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं रही। किसी एक व्यक्ति के विचारों को राजनीतिक कर्म का केन्द्र नहीं बनाना चाहिए। वे विचार सहायता तो करें, परन्तु नियंत्रण नहीं। स्वीकृति और अस्वीकृति, दोनों ही अंधविश्वास के बदलते पहलू हैं। मेरा विश्वास है कि गाँधीवादी अथवा मार्क्सवादी होना मतिहीनता है और गाँधीवाद-विरोधी या मार्क्सवाद-विरोधी होना भी उतनी हो बड़ी मूर्खता है। गाँधी और मार्क्स दोनों के ही पास अमूल्य ज्ञान-भण्डार है, किन्तु तभी ज्ञान प्राप्त हो सकता है, जब विचारों का ढाँचा किसी एक युग या व्यक्ति के विचार तक ही सीमित न हो।
खोज करने वालों को व्यक्ति के विचारों का अन्वेषण-करना होगा, विशेषतः अगर वह व्यक्ति मार्क्स या गाँधी हो। आगे के पृष्ठों में लिखे विचार बिल्कुल अधूरे हैं और लिखे जाने के बाद इनमें किसी तरह का परिवर्तन भी नही किया गया है। लेकिन भूल भी ज्ञान का ही स्रोत है। मैं इतनी ही आशा करता हूँ कि मैंने कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण बातें कही हैं, जो किसी अधिक योग्य प्रतिभाशाली और उद्यमी व्यक्ति में आगे खोज करने की गुदगुदी पैदा करेंगी। किसी भी दशा में मुझे आशा है कि इन पृष्ठों से अर्थशास्त्र में एक ऐसी विचारधारा की आवश्यकता प्रकट होगी जो मौजूदा सभी विचारों से भिन्न होगी। जो समस्त विश्व को समान कल्याण के एक सुखी इकाई में बदल देगी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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