- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
अस्ताचल की ओर – भाग 3
प्रथम परिच्छेद
…., ‘‘आज तो आप बहुत प्रसन्न प्रतीत हो रहे हैं ?’’
‘‘हाँ देवी ! तुम्हारा अनुमान सत्य है। आज एक विशेष घटना घटी है।’’
‘‘क्या ?’’
तब तक पण्डित शिवकुमार और उसकी पत्नी द्वार से प्रांगण में पहुँच गये थे। वहाँ दीवार के सहारे खड़ी की गयी चारपाई को चन्द्रमुखी ने प्रांगण में बिछा दिया और पति को उस पर बैठने के लिए कहने के उपरान्त पूछने लगी, वह शुभ साचार अभी बतायेंगे अथवा दूध पीने के उपरान्त कुछ तरो-ताजा होकर ?’’
‘‘समाचार इतना सुखकर है कि उससे भूख भी लग आयी है, इसलिए पहले दूध ले आओ, इसके बाद तुम्हें समाचार सुनाऊँगा।’’
शुभ समाचार सुनने की लालसा में पण्डितजी की पत्नी तेजी से रसोईघर में घुसी और उसे गर्म करने के लिए अँगीठी पर रख दिया।
पण्डित शिवकुमार गाँव की पाठशाला में ही अध्यापक था। उस पाठशाला में दस वर्ष से कम आयु के बालक और बालिकायें पढ़ने के लिए आया करते थे। पाठशाला का कार्य मध्याह्नतर समाप्त हो जाया करता था।
शिवकुमार के माता-पिता का देहान्त हो चुका था। उसके पिता का स्वर्गवास तो उसके होश सम्हालने से पहले ही हो गया था। बड़ा होने पर वह विद्याध्ययन के लिए काशी चला गया था और जब वह अपना अध्ययन पूर्ण कर घर लौटा तो तभी उसकी माता परलोक सिधार गयी।
जिस समय शिवकुमार के पिता का देहान्त हुआ था उस समय उनके घर की आर्थिक स्थिति अति दुर्बल थी। तदपि उसके माता के मन में अपने पुत्र को प्रकाण्ड विद्वान बनाने की उत्कट अभिलाषा थी। शिवकुमार का पिता भी काशी में अध्ययन के लिए गया था। वहाँ से वह तर्कभूषण की उपाधि से विभूषित होकर लौटा था। शिवकुमार की माता की इच्छा थी कि यदि उसका पुत्र अपने पिता से अधिक नहीं तो कम से कम उतनी विद्या तो ग्रहण कर ही ले।
उनके गाँव से आधा कोस के अन्तर पर हस्तिनापुर नगर में उनके एक सम्पन्न यजमान रहते थे। उनका नाम था मुरारी कृष्ण। जिस समय शिवकुमार की आयु छः वर्ष की हुई उसने अपने पुत्र को मुरारी कृष्ण के पुत्र के साथ काशी भेज दिया। मुरारी कृष्ण का पुत्र काशी में रेशमी कपड़ा क्रय करने के लिए जाया करता था। तब शिवकुमार की माँ ने अपने पुत्र को उसे सौंपते हुए कहा था, ‘‘छोटे सेठ ! हमारे शिव को काशी ले जाओ और इसे किसी विद्वान् के पास पढ़ने के लिए बैठा देना। तुम्हारी इस सहायता के लिए मैं आजीवन तुम्हारी ऋणी रहूँगी।’’
मुरारी कृष्ण के लड़के ने शिव को अपने साथ ले जाना स्वीकार कर लिया और दूसरे दिन उसे अपने साथ लेकर काशी के लिए चल दिया। उस समय केवल दो टका ही शिव की माता ने अपने पुत्र को उसके मार्ग-व्यय आदि के लिए दे पायी थी। इससे अधिक उसके पास था ही नहीं।
मुरारी कृष्ण के पुत्र ने जब देखा कि शिव को वह दो टका बहुत कम-सा लग रहा है तो उसने मुस्कुराते हुए उससे कहा था, ‘‘ले लो शिव !’’ किन्तु ध्यान रखना, इसका एक लाख गुणा करके माँ को लौटाना होगा।’’
तब शिव इसका अर्थ नहीं समझा था और वह विस्मय से सेठ का मुख देखने लगा था। सेठ ने पण्डिताइन को प्रणाम किया और शिव का हाथ पकड़कर उसको अपने रथ पर बैठा लिया। दोनों जब बैठ गये तो रथ पूर्व दिशा की ओर चल दिया।
इस प्रकार छोटे सेठ के सहारे शिव भी काशी जा पहुँचा। पन्द्रह वर्ष तक उसने काशी में अध्ययन किया और न्यायभूषण की उपाधि अर्जित कर वह पन्द्रह वर्ष उपरान्त ही घर लौटकर आया। सेठ मुरारी कृष्ण के परिवार का कोई-न-कोई व्यक्ति समय-समय पर माल क्रय करने के लिए काशी जाता रहता था और वही शिव की माता को शिव का कुशल समाचार और उसके पढ़ने की प्रगति के विषय में बताता रहता था। इस प्रकार शिव की माँ उत्सुकता से अपने पुत्र के विद्वान बन कर वापस घर लौटने की प्रतीक्षा कर रही। निर्धनता के कारण कठोर परिश्रम और जीवन-संघर्ष में उसकी माता के स्वास्थ्य ने साथ छोड़ना आरम्भ कर दिया। वह असाध्य श्वास रोग से ग्रस्त हो गयी।
शिवकुमार की माता श्वास रोग के कारण इतनी दुर्बल हो गयी थी कि जब शिवकुमार उपाधि प्राप्त कर घर वापस लौटा तो वह अपनी माता को भी नहीं पहचान पाया। जिस समय वह आया था उस समय उसकी माँ कंकाल के रूप में अपने घर के प्रांगण में एक चारपाई पर पड़ी हुई थी। शिवकुमार उसका मुख देखता रह गया। शिव जब छः वर्ष की आयु में काशी के लिए गया था तो वह उस समय सुकोमल बालक था। आज वह लम्बा-चौड़ा, स्वस्थ तथा दाढ़ी-मूँछ वाला नवयुवक जब उसके सामने खड़ा हुआ तो माता को भी अपने पुत्र को पहचानने में कुछ कठिनाई हुई। दोनों एक-दूसरे का मुख देखते रहे। पहले शिव ने ही अपनी माँ को पहचाना और उसने माँ को प्रणाम करते हुए कहा, ‘‘माँ ! मैं शिव हूँ।’’
माँ ने पुत्र को आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘‘ईश्वर को अनेक धन्यवाद। बेटा ! तुम समय पर पहुँच गये हो। मैं तो तुम्हें देखने की अभिलाषा ही छोड़ चुकी थी। अच्छा अब तुम एक काम करो। पड़ोस के मकान में जाकर वहाँ से माताजी को बुला लाओ। कहना मैंने बुलाया है।’’
शिव माता की आज्ञापालन करता हुआ पड़ोस के मकान में चला गया। उसने द्वार खटखटाया तो एक युवती द्वार खोलने बाहर आयी। द्वार खोलते ही एक अपरिचित नवयुवक को वहाँ खड़ा देख उसको विस्मय हुआ। उसने पूछा, ‘‘कहिए, किससे मिलना है ?’
‘‘मौसी से कहिये कि उनको मेरी माताजी बुला रही हैं।’’
‘‘किन्तु आप कौन हैं ?’’ पूछते हुए युवती मुस्करा पड़ी थी।
‘‘मेरा नाम शिवकुमार है।’’
युवती नहीं समझ पायी तो उसने पूछा, ‘‘आपकी माताजी कहाँ रहती हैं ?’’
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.