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अथ पंचीकरण
मुक्ति का साधन केवल ब्रह्मज्ञान है। यह ज्ञान है-जीव और ब्रह्म की एकता का ज्ञान। मोक्ष का अधिकारी सन्यासी है और गृहस्थ कर्म का अधिकारी है। धर्मशास्त्र प्रवृत्ति का हेतु है जबकि ज्ञानशास्त्र निवृत्ति का। वेदान्त का मार्ग ज्ञान का मार्ग है। करोड़ों कर्म भी ज्ञान का स्थान नहीं ले सकते। ज्ञान, कर्मों का फल नहीं है यह विचार का परिणाम है। कर्म कर्त्ता के अधीन होता है और ज्ञान कभी कर्त्ता के अधीन नहीं होता यदि वह भी कर्त्ता के अधीन होता तो सभी ज्ञानी बन जाते। किसी वस्तु का ज्ञान देखने से होता है किन्तु ब्रह्म का ज्ञान उसे जानना मात्र है, अनुभूति करना है। ज्ञान ही अज्ञान को दूर करने का उपाय है, कर्म तो ज्ञान में बाधक है।
अतः मुक्ति ईश्वर के हाथ में है; वह किसी पुरुषार्थ का परिणाम नहीं है। ज्ञानमार्गी मुक्ति की बात कहते हैं व भक्त उसे दर्शन की बात कहते हैं, दोनों का अर्थ एक ही है। केवल भाषा का ही अन्तर है।
Additional information
Language | Hindi |
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Publishing Year | 2015 |
Pulisher | |
Binding | Hardbound |
Authors | |
ISBN | |
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