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Description
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आवारा भीड़ के खतरे
यह पुस्तक हिंदी के अन्यतम व्यंगकार हरिशकर परसाई के निधन के बाद उनके असंकलित और कुछेक अप्रकाशित व्यंग-निबंधों का एकमात्र संकलन है। अपनी कलम से जीवन ही जीवन छलकानेवाले इस लेखक की मृत्यु खुद में एक महत्त्वहीन-सी घटना बन गई लगती है। शायद ही हिंदी साहित्य की किसी अन्य हस्ती ने साहित्य और समाज में जड़ ज़माने की कोशिश करती मरणोन्मुखता पर इतनी सतत, इतनी करारी चोट की हो। इस संग्रह के व्यंग-निबंधों के रचनाकाल का और उनकी विषय-वस्तु का भी दायरा काफी लम्बा-चौड़ा है। राजनितिक विषयों पर केन्द्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की मांग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि, उनका वल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है ।
वैसे राजनितिक व्यंग्य इस संकलन में अपेक्षाकृत कम हैं-सामाजिक और साहित्यिक प्रश्नों पर केन्द्रीकरण ज्यादा है। हंसने और संजीदा होने की परसाई की यह आखिरी महफ़िल उनकी बाकि साडी महफ़िलो की तरह ही आपके लिए यादगार रहेगी।
Additional information
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Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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