Ayurvediya Hitopadesh

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Ayurvediya Hitopadesh

Ayurvediya Hitopadesh

225.00 200.00

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225.00 200.00

Author: Vaidya Ranjeetrai Desai

Availability: 5 in stock

Pages: 285

Year: 2021

Binding: Paperback

ISBN: 0000000000000

Language: Sanskrit & Hindi

Publisher: Shree Baidyanath Ayurved Bhawan Pvt. Ltd.

Description

आयुर्वेदीय हितोपदेश

प्रस्तावना

‘‘आयुर्वेदीय हितोपदेश’’ नाम की यह पुस्तक लिखकर वैद्य रणजितरायजी ने आयुर्वेदीय छात्रों तथा अध्यापकों काबड़ा उपकार किया है। सम्पूर्ण वैदिक साहित्य में अत्यन्त प्राचीन ऋग्वेद है। उस ऋग्वेद से लेकर अद्ययावत् जो आयुर्वेदीय साहित्य उपलब्ध है, उस सब साहित्य का आलोडन और मन्थन करके उसमें से जो वाक्यरत्न आयुर्वेद के अध्ययन के लिए अत्यन्त उपयुक्त उन्हें प्राप्त हुए, उन सब को चुनकर वैद्य रणजितरायजी ने इस ‘‘आयुर्वेदीय हितोपदेश’’ नामक निबन्ध को ग्रथित किया है। इस निबन्ध के अध्ययन से छात्रों को आयुर्वेद के अध्ययन में बड़ी सुगमता होगी।

आजकल आयुर्वेदीय कालेजों में प्रविष्ट होनेवाले छात्रों में हाई स्कूल की परीक्षा में संस्कृत विषय के साथ उत्तीर्ण छात्र ही अधिक संख्या में देश भर में महाविद्यालयों में प्रविष्ट होते है। इन छात्रों का संस्कृत भाषा का ज्ञान प्रायः कमजोर तथा अपर्याप्त पाया जाता है। अतः उनका संस्कृत भाषा का ज्ञान मजबूत करने की दृष्टि से उन्हें आयुर्वेदी महाविद्यालयों में प्रविष्ट होने के उपरान्त कुछ संस्कृत साहित्य आजकल पढ़ाया जाता है। इस प्रकार पढ़ाये जाने वाले यत्किञ्चित संस्कृत साहित्य की अपेक्षया यदि ऐसे छात्रों को ‘आयुर्वेदीय हितोपदेश’ पढ़ाया जाए तो उनका संस्कृत भावा का ज्ञान-परिपुष्ट हो जाएगा और साथ ही साथ उनको आयुर्वेद के मौलिक सूत्रों एवं सिद्धान्तों का भी परिचय प्राप्त होगा, जिन्हें कण्ठस्थ करने से आयुर्वेद शास्त्र में श्रद्धा भी होगी और हितोपदेश के ये वचन आगे चलकर उन्हें बहुत अधिक काम के भी साबित होंगे।

वैद्य रणजितरायजी अनेक आयुर्वेदीय ग्रन्थों के रचयिता हैं और उनके सभी ग्रन्थ भाषा तथा सिद्धान्त की दृष्टि से बड़े ही लोकप्रिय हैं । अतः उनके द्वारा रचित यह ‘‘आयुर्वेदीय हितोपदेश’’ ग्रन्थ भी बड़ा ही लोकप्रिय एवं छत्रोपयोगी सिद्ध होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं होना चाहिए। मैं श्री रणजितरायजी को बहुत ही धन्यवाद देना चाहता हूँ क्योंकि उन्होंने इस छत्रोपयोगी एवं सुन्दर ग्रन्थ की सफलता के साथ रचना करके आयुर्वेदीय साहित्य के महत्वपूर्ण अंग कीपू र्ति की है।

श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक, वैद्य रामनारायणजी शर्मा को भी मैं बहुत धन्यवाद देना चाहता हूँ। उन्होंने आयुर्वेद की उन्नति में बराबर अपनी पूरी ताकत लगा रखी है। अपने बड़े-बड़े कारखानों में आयुर्वेद की सभी प्रकार की औषधियाँ तो वे तैयार करते ही रहते है; इसके साथ ही साथ आयुर्वेद के छात्रोपयोगी अनेक ग्रन्थों का भी प्रकाशन उन्होंने करवाया है। आयुर्वेद की उन्नति का कोई भी कार्य क्यों न हों, उनका वरदहस्त उस प्रत्येक छोटे-मोटे कार्य में सहायता करने के लिए सदा के लिए सन्नद्ध रहता है।

मुझे पूरा विश्वास है कि ‘आयुर्वेदीय हितोपदेश’ का उनका यह प्रकाशन आयुर्वेद का अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए बड़ा ही उपयुक्त साबित होगा।

प्रयोजन

आयुर्वेद के रहस्यवबोधन के लिये संस्कृत का ज्ञान आवश्यक है, यह सर्ववादिसंमत है। यों आयुर्वेद के ही नहीं, वेदों तक के देशी-विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं और उनकी सहायता से इनमें प्रतिपादित विषयों को जाना जा सकता है; तथापि यह सर्वदा संभव है कि अनुवादों में अनुवादक के विचारों और समझ की छाप आ जाय। अतएव विद्या और कलामात्र में यथाशक्य ग्रन्थों को मूल भाषा में पढ़ना अधिक उपयुक्त समझा जाता है। आयुर्वेद पर यह सच्चाई सविशेप घटित होती है।

विद्यार्थी स्वयं मूल ग्रन्थों को समझ सके इस निमित्त या तो उनका संस्कृत ज्ञान उतम कोटि का होना चाहिए या पाठ्य विषयों में एक संस्कृत हो या फिर उन्हें आयुर्वेद के मूल-ग्रन्थों को सामने रखकर ही पढ़ाया जाय, ये वैकल्पिक उपाय हैं। पाठ्य विषयों में प्रायः पाश्चात्य चिकित्सा भी अन्तर्भावित होने से उस विषय का आधारभूत ज्ञान ग्रहण किए विद्यार्थी लेना आवश्यक हो गया है। परिणामतया, प्रथम विकल्प शक्य नहीं रहा है। अन्तिम तृतीय विकल्प भी इस कारण शक्य नहीं है कि पाठ्यक्रम अब विषय-प्रधान हो गया है अतः तदनुरूप व्याख्यानों और पाठ्य ग्रन्थों का ही अवलम्बन करना श्रेयस्कर हो गया है। शेष द्वितीय विकल्प ही साध्य होने से सर्वत्र पाठ्यक्रम में संस्कृत एक विषय के रूप में रेखा गया है।

इस प्रकार पाठ्यक्रम के अंगभूत संस्कृत विषय में हितोपदेश, पज्जतन्त्र दशकुमारचरित, शाकुन्तल आदि ग्रन्थ निर्धारित किये गये हैं। ये ग्रन्थ विद्यार्थियों के लिए प्रायः दुर्बोध होने से अपरंच इनका साक्षात् सम्बन्ध आयुर्वेद से न होने से इनके अध्ययन और अध्यापन में विद्यार्थी और अध्यापक दोनों की रुचि प्रायः नहीं होती।

अच्छा यह है कि संस्कृत विषय के अध्यापन के लिए आयुर्वेद के ग्रन्थों से ही वचन संगृहीत कर पाठ्य-पुस्तक मनायी जाय। यह प्रयत्न इसी दृष्टि से किया गया है। ग्रन्थ लिखते समय मेरी धारणा हुई कि संस्कृत विषय प्रत्येक श्रेणी या परीक्षा में निर्धारित कर प्रत्येक श्रेणी के लिए पृथक् इसी पद्धति से पाठ्य-पुस्तकों का निर्माण होना चाहिए। वचन प्राय: उन विषयों के होने चाहिए जो उस परीक्षा में निश्चित हों। इससे विद्यार्थी मूल ग्रन्थों के संपर्क में भी आएँगे और विशेष भार भी उनकी बुद्धि पर न पड़ेगा।

अन्य भी कई प्रकरण लेने योग्य लूट गए है। परन्तु कई स्पष्ट कारणों से ग्रन्थ को मर्यादित रखना आवश्यक हुआ। तथापि, विद्यार्थियों के संस्कृत ज्ञान की वृद्धि हो, इस दृष्टि से मैंने भाषान्तर में भी संस्कृत के शब्दों का व्यवहार विशेष किया है।

ग्रन्थों में कुछ वचन वेदों से भी संगृहीत किए गए है। कारण यह है कि आयुर्वेद के पुनर्जीवन के लिए आयुर्वेद से भिन्न ग्रन्थों का भी दोहन करने की परिपाटी प्रचलित हो गयी है। ऐसे ग्रन्थों में वेद प्रमुख है। अतः उनकी भाषा का भी यत्किंचित् परिचय कराना असंगत नहीं समझा।

टीकाएँ पढ़ने का भी विद्यार्थी को अभ्यास हो जाए इस निमित्त टीकाओं से भी वचन उद्धत किए गए हैं। जो महानुभाव इस ग्रन्थ का पाठ्य-पुस्तकतया उपयोग करें वे टीकाओं तथा नीचे दी टिप्पणियों को भी पाठ्य विषय के रूप में स्वीकार करें, यह नम्र विनती करता हूँ।

पुस्तक संस्कृत विषय के पाठ्य विषय के रूप में रची गयी है, अतः अध्यापक महानुभावों से यह निवेदन करने की तो विशेष आवश्यकता नहीं कि वे संधि तथा शब्दों और धातुओं कें रूपा के अपेक्षित ज्ञान के रूप में व्याकरण का भी बोध विद्यार्थियों को देते जाएँगे।

अन्त में जिन विद्यावयोवृद्ध श्रीमानों तथा सन्मित्रों के प्रोत्साहन से यह ग्रन्थ पूर्ण करने में मैं समर्थ हुआ हूँ उनके प्रति हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। विशेष और सर्वान्तःकरण से कृतज्ञता तो मैं भी दत्तात्रेय अनन्त कुलकर्णी जी एम०एस०सी०, आयुर्वेदाचार्य, उपसंचालक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य आयुर्वेद, उत्तर प्रदेश के प्रति व्यक्त करता हूँ। पुस्तक अपनी कललावस्था में थी तभी आपने इसे पूर्ण करने के लिए मुझे प्रेरणा दी, एवं इसका मुद्रण होने पर आप से इसकी प्रस्तावना लिखने की विनती की तो अत्यन्त व्यस्त समय में से यथाकथंचित् अवकाश निकाल ग्रन्थ को अक्षरशः बाँच प्रस्तावना लिखकर मुझे तथा प्रकाशकों को उपकृत और उत्साहित किया। भगज्ञान धन्वन्तरि उन्हें आयुर्वेद की भूयसी सेवा के लिए दीर्घ और स्वस्थ आयु प्रदान करें, यही अभ्यर्थना !!

Additional information

Authors

Binding

Paperback

ISBN

Pages

Publishing Year

2021

Language

Sanskrit & Hindi

Pulisher

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